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________________ ३. इतिहास ग्रन्थमाला पर प्राप्त सम्मतियां महाराष्ट्र मंत्री एवं प्रवतक श्री विनय ऋषिजी म. सा. ग्रन्थ क्या है, मानो साहित्यिक विशेषतामों से संपृक्त एक महनीय कृति है, जो भारती भण्डार में, विशेषतः जैन साहित्य में श्री वृद्धि के साथ-साथ एक महती आवश्यकता की संपूर्ति करती है। यह ग्रंथ इतिहास पुरातत्त्व और शोधनकार्य के साथ ही साथ अध्येता विद्वज्जनों एवं साधारण पाठकों की ज्ञान-पिपासा को एक साथ पूर्ण करता है । .."यह नवोदित सर्वोत्तम ग्रंथरत्न है । मात्मा मुनि श्री मोहन ऋषिजी म. सा. बहुत वर्षों की साधना और तपश्चर्या के पश्चात् श्री उपाध्यायजी की कृति समाज के सामने आई है। इतनी लगन के साथ इतना परिश्रम.माज तक शायद ही अन्य किसी लेखक ने किया होगा। भावी पीढ़ी के लिये उनकी यह अपूर्व देन सिद्ध होगी। सम्यग्दर्शन (सैलाना) २० मार्च १९७२ समीक्षक : भी उमेश मुनि 'अणु' इतिहास की नूतन विधा पश्चिम जगत् की देन है। फिर भी यह मानना भ्रान्त होगा कि प्राचीन भारत के मनीषी, इतिहास रूप साहित्य विधा से बिलकुल अपरिचित थे। वैदिकों ने पुराणों में इतिहास निबद्ध करने का प्रयत्न किया। जैन प्राचार्यों ने कालचक्र के अवसर्पिणी उत्सर्पिणी रूप विभागों के अनुसार घटनाक्रम को संयोजित करके, इतिहास को सुरक्षित करने का प्रयास किया। __ ""यह तीर्थकर खण्ड है। इसमें तीर्थंकरों के पूर्व भवों और जीवन के विषय में लेखन हुमा है। तीर्थंकरों के पूर्वभवों को प्राज के इतिहासविद् शुद्ध इतिहास के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि आधुनिक इतिहास-लेखन भौतिकवाद की भित्ती पर प्रतिष्ठित है। (भ० महावीर के विषय में प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री का विपुल मात्रा में उपयोग किया गया है। प्रभु वीर के भक्त राजामों का परिचय भी दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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