SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 843
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीर सम्वत् १००० से उत्तरवर्ती प्राचार्य ] [ ७८५ को न्यायशास्त्र की शिक्षा प्रदान कर उन्हें बौद्ध परम्परा के प्रमाण शास्त्रों के दुर्भेद्य प्रमेयों को निरस्त करने में प्रवीरण बना दिया । उसी समय शान्तिसूरि ने उत्तराध्ययन पुत्र की टीका की रचना की । सुविहित परम्परा के आचार्य मुनिचन्द्र सूरि ने शान्तिसूरि से न्याय शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् अपने शिष्य देवसूरि को प्रमाण प्रमेय श्रादि की तलस्पर्शी शिक्षा दे उन्हें अजेय वादी बना दिया । कालान्तर में इन्हीं देवसूरि ने शान्तिसूरि द्वारा निर्मित उत्तराध्ययन की टीका से स्त्रीमुक्ति प्रकरण का अध्ययन कर प्रणहिलपुर पाटण के महाराज सिद्धराज की सभा में दिगम्बराचार्य को वाद में पराजित किया । इस प्रकार अनेक वर्षों तक जिनशासन की चहुंमुखी अभिवृद्धि करने के अनन्तर अपनी आयु का अवसान समीप देख शान्तिसूरि ने वीरसूरि, शीलभद्र सूरि र सर्वदेवसूरि इन तीन विद्वान मुनियों को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्राचार्य पद प्रदान किया । तदनन्तर उन्होंने साढ़ नामक श्रावक के साथ उज्जयन्त पर्वत की श्रर प्रयाण किया । उज्जयन्त गिरि पर पहुंच कर उन्होंने संलेखनापूर्वक अनशन किया । पच्चीस दिन के अनशन के पश्चात् उन्होंने विक्रम सं० २०६६ में कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन स्वर्गारोहण किया । ' 'तपागच्छ पट्टावली' में प्रभावक चरित्र के उपरिर्वारंगत उल्लेख से कुछ भिन्न प्रकार का उल्लेख उपलब्ध होता है । 'तपागच्छ पट्टावली' में बताया गया है कि वि० सं० १०६७ में हुए धूलकोट के पतन के सम्बन्ध में शान्तिसूरि ने कुछ दिन पूर्व ही भविष्यवाणी कर ७०० श्रीमाली परिवारों को मौत के मुख से निकाल लिया । तदनन्तर विक्रम सं० ११११ में कानोड़ में उनका स्वर्गगमन हुप्रा । इस साधारण उल्लेख भेद के अतिरिक्त शान्तिसूरि के जीवन वृत्त के सम्बन्ध में प्रभावक चरित्र और तपागच्छ पट्टावली में जो विवरण प्रस्तुत किया गया है, उससे यही प्रकट होता है कि शान्तिसूरि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के एक अप्रतिम प्रतिभाशाली, अजेय वादी, प्रकाण्ड पण्डित एवं महान् प्रभावक प्राचार्य थे । 9. श्री विक्रमवत्सरतो वर्ष सहस्रं गते षण्णवतो । शुचिसिति नवमीकुजकृत्तिकासु शान्तिप्रभोरभूदस्तम् ।। १३० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy