________________
कतिपय अज्ञात तथ्य ]
[ १६
गया, अध्यात्म विधाए प्रणष्ट तथा विशुद्ध क्रियाएं भ्रष्ट हो गईं । अर्थात् साधु साध्वी श्रावक श्राविका वर्ग अपने आदर्श कत्तव्यों से च्यूत हो गये और यह जिन शासन अर्थात् महावीर का धर्मसंघ सूत्र रहित हो गया। चतुर्विध संघ के साधु साध्वी श्रावक श्राविका इन चारों वर्गों के सदस्यों का प्राचार व्यवहार सर्वज्ञ प्रणीत आगमों में प्रदर्शित व प्रतिपादित मूल विशुद्ध मार्ग से विपरीत हो गया।
__मध्ययुगीन मन्दिरों, तीर्थों, वसतियों, चैत्यालयों आदि से उपलब्ध प्राचीन शिलालेखों, ताम्रपत्रों, अभिलेखों आदि के अध्ययन द्वारा उस युग के श्रमणसंघों, उनके प्राचार्यों और मुनियों के विशुद्ध श्रमणाचार से विपरीत शिथिलाचारपूर्ण प्राचरण से, द्रव्य संग्रह की प्रवृत्ति से और आगम साहित्य में प्रतिपादित जैनधर्म के अध्यात्मपरक एवं अहिंसा मूलक महान सिद्धान्तों के अध्ययन के पश्चात इतिहास के मर्मज्ञ एवं तटस्थ विद्वान् ने उपरिवरिणत प्राचार्यों के लिये उनकी अन्तर्दशा के द्योतक उद्गारों के अनुरूप ही अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा है :
.....................Thus, the distinction between Jain monks and priests gradually disappeared from the 7th., 8th. centuries. The change in usual practice, of priesthood would have surely made them the sole master of enormous wealth, acquired from endowments made by the Jain devotees.
The above analysis of the nature of Jaina monks in Karnataka shows how far they departed from the precepts of their founder Mahavira, who denounced the infallible authority of the priest class among the Hindus and great emphasis on the purity of soul rather than the observances of ritualistic formalism. The rituals introduced by the Jaina teachers of Karnataka were not in keeping with the original puritan character of Jainism. The introduction of rituals also affected the Jaina vow of Ahinsa (non-injury). In the course of performing worship and rituals; the Jaina devotees occasionally committed acts of injury to unseen germs in water, flowers, etc., which were used in the worship of Jina. The offering of Homa or fire oblation and Arti or waving the lamp round the Jina killed small insects."9
इन्हीं विद्वान ऐतिहासज्ञ ने मध्ययुगीन धर्मसंघों द्वारा परम्परागत श्रमण जीवन में मूल श्रमरणाचार अथवा श्रमरण चर्या में किये गये परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए लिखा है :
"The most important change which affected the Jainas in Karnataka related to the way of their living. The Wandering mode of life, originally intended for the monk community, yielded place to permanent habitation of the Jaiva monks in Jaina monasteries. The Digambara teachers of
१. जैनिज्म इन अरली मिडिएवल कर्नाटका, बाई रामभूषणप्रसादसिंह, पेज ५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org