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________________ ३३ वें युग प्रधानाचार्य श्री सम्भूति जन्म दीक्षा सामान्य व्रतपर्याय युगप्रधानाचार्यकाल वीर नि. सं. १२२१ १२३१ 33 Jain Education International १२३१-१२५० १२५० - १३०० स्वर्ग १३०० ७८ वर्ष, २ मास और २ दिन सर्वायु प्रार्य पुष्यमित्र के पश्चात् ३३वें युगप्रधानाचार्य प्रार्य संभूति हुए । प्रार्य संभूति का जन्म वीर नि. सं. १२२१ में हुआ । आपने वीर नि. सं. १२३१ में १० वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की। वीर नि. सं. १२५० में युगप्रधानाचार्य पुष्यमित्र के स्वर्गगमन के पश्चात् चतुर्विध संघ द्वारा प्रागम निष्णात आर्य संभूति को युग प्रधानाचार्य पद प्रदान किया गया । ५० वर्ष के अपने युगप्रधानाचार्य काल में प्रार्य संभूति ने जिनशासन की उल्लेखनीय सेवा करते हुए स्वयं का तथा अनेक भव्यात्माओं का कल्यारण किया। वीर नि. सं. १३०० में समाधिपूर्वक ७८ वर्ष, २ मास और २ दिन की आयु पूर्ण कर प्रार्य संभूति स्वर्गस्थ हुए । "} " 11 11 " For Private & Personal Use Only " " सिरि दुष्षमाकाल समरण संघ थयं" 'युगप्रधानाचार्य पट्टावली' एवं युगप्रधानाचार्य परम्परा से सम्बन्धित जो सामग्री कतिपय वर्ष पूर्व तक प्रकाश में प्राई है, इन सब में तेतीसवें युगप्रधानाचार्य के रूप में प्राचार्य संभूति के नाम का उल्लेख है । परन्तु “तित्थोगाली पइन्नय" जो युगप्रधानाचार्य परम्परा के सम्बन्ध में अद्यावधि पर्यन्त उपलब्ध सामग्री में सर्वाधिक प्राचीन है, उसमें उल्लिखित तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए विचार करने पर ऐसा संदेह होता है कि युगप्रधानाचार्य श्री संभूति और माढ़र संभूति के पूर्वापर क्रम के सम्बन्ध में दुष्षमाकाल श्रमण संघस्तवकार एवं उनके उत्तरवर्ती पट्टावलीकारों द्वारा त्रुटि हो गई हो । "" चतुर्दश पूर्व तथा एकादशांगी के समय-समय पर भूत एवं भावी ह्रास अथवा व्यवच्छेद के प्रसंग में तित्थोगाली पइन्नयकार ने वीर नि. सं. १००० के पश्चात् वीर नि. सं १५२० तक हुए युगप्रधानाचार्यों में से ४ युगप्रधानाचार्यों के स्वर्गस्थ होने www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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