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________________ सिंहावलोकन अगाध करुणासिन्धु शासननायक भगवान महावीर के शासन का ही प्रभाव है कि इतिहास-लेखन जैसा यह अति दुरूह कार्य भी, अनेक नवीन उपलब्धियों के साथ, आधे के लगभग सम्पन्न हो चुका है। प्रस्तुत इतिहास के प्रथम भाग (तीर्थङ्कर खण्ड) में कुलकर काल से प्रारम्भ कर प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल में कर्मयुग के 'प्राद्य प्रवर्तक, धर्मतीर्थ के आदिकर्ता, प्रथम राजा, प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव से चौबीसवें तीर्थङ्कर श्रमरण भगवान् महावीर के निर्वाण तक का और द्वितीय भाग में भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात उनके प्रथम पट्टधर प्रार्य सुधर्मा से सत्तावीसवें पट्टधर एवं अन्तिम पूर्वधर आचार्य देवद्धिगणि क्षमाश्रमण पर्यन्त, वीर नि० सं० १ से वीर नि० सं० १००० तक का जैन धर्म का सांगोपांग विशद इतिहास जैन जगत् एवं इतिहासविदों के समक्ष प्रस्तुत किया जा चुका है। इस इतिहास-माला के प्रालेखन के प्रारम्भ से ही मुख्य रूप से इस बात का ध्यान रखा गया है कि धार्मिक इतिहास के साथ-साथ समसामयिक राजनतिक एवं सामाजिक इतिहास पर भी यथाशक्य प्रकाश डाला जाय । तेवीसवें तीर्थङ्कर भगवान् पार्श्वनाथ के काल से देवद्धिगणि क्षमाश्रमण के स्वर्गारोहण काल तक के धार्मिक इतिहास के साथ-साथ प्रमुख राजनैतिक घटनाओं का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है, वह ईसा से पूर्व ७०० से ई० सन् ४७३ तक की भारत के कुल मिला कर पौने बारह सौ वर्षों के संक्षिप्त किन्तु क्रमबद्ध राजनैतिक इतिहास की एक प्रामाणिक झलक दे रहा है, वह एतद्विषयक गहन अध्ययन, चिन्तन, मनन और गवेषणा का प्रतिफल है। अब इस तृतीय भाग में वीर नि० सं० १००१ से १४७५ तक का जैन धर्म का इतिहास तत्कालीन प्रमुख राजनैतिक एवं सामाजिक घटनाओं के संक्षिप्त विवरण के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है । धर्म एवं इतिहास में अभिरुचि रखने वाला सामान्य से सामान्य पाठक भी जैन धर्म के इतिहास की प्रारम्भ से लेकर अन्त तक की प्रमुख, ऐतिहासिक घटनाओं को सहज ही अपने स्मृतिपटल पर अंकित कर सके, इस उद्देश्य से सम्पूर्ण इतिहास काल को ६ वर्गों में विभक्त किया गया है । प्रथम भाग में भगवान् ऋषभदेव से भगवान महावीर तक के काल को 'तीर्थकर काल' की संज्ञा दी गई है। द्वितीय भाग में भगवान् महावीर के द्वितीय पट्टधर आर्य जम्बू के निर्वाण तक के काल को "केवलिकाल'' की, आर्य प्रभव स प्राचीन गोत्रीय भद्रबाहु तक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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