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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास -- भाग ३
हेस्टिग्स एन्साइक्लोपीडिया ग्राफ रिलिजन एण्ड एथिक्स में अप्पर की जीवनी के सम्बन्ध में थोड़ा प्रकाश डालते हुए बताया गया है कि अप्पर अपनी युवावस्था में एक जैन साधु था । अपनी प्रौढ़ अवस्था में वह कट्टर शैव साधु था और वृद्धावस्था में वह अपनी प्रौढ़ावस्था में स्वयं द्वारा (शैव सन्त के रूप में) किये गये आचरण पर पश्चात्ताप करता हुआ, पुन: जैन धर्म का अनुयायी बन गया । पुन: जैन बन जाने के पश्चात् यह अप्पर कहीं शैव धर्म का घोर अनिष्ट न कर बैठे- इस आशंका से सशंक हो शैव धर्मानुयायियों ने रहस्यपूर्ण ढंग से अप्पर की हत्या कर दी और एक काल्पनिक प्राश्चर्यकारी कथानक की संरचना कर लोगों में इस प्रकार का समाचार प्रसृत कर दिया कि अप्पर को एक सिंह ने मारकर खा लिया है । वह सिंह अन्य कोई नहीं भगवान् शंकर का गरण ही था ।
भगवान् जिनेश्वर प्रथवा श्रर्हत् की स्तुति के रूप में अप्पर द्वारा तमिल भाषा में रचित स्तोत्र भाज भी जैन धर्मावलम्बी भक्तों द्वारा बड़ी श्रद्धा एवं प्रेम के साथ गाये जाते हैं । अप्पर के वे स्तुतिपरक पद्य कतिपय अंशों में तेवारम् से मिलते-जुलते हैं और जैनों में बड़े ही लोकप्रिय हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि प्रप्पर ने सम्भवत: इन लोकप्रिय स्तुतियों-स्तोत्रों की रचना अपनी प्रायु के अन्तिम भाग में की थी ।
एन्साइक्लोपीडिया में जो एतद्विषयक उल्लेख है, वह इस प्रकार है :
Note The Jains give an altogether different version of Appar's life thus :
"Appar was a Jain ascetic in his youth, a staunch Shaiva in his middle age and a repented follower of Jainism in his old age. On account of his reconversion to Jainism he was murdered by his Saivite followers lest he should undo by popularising a mysterious story that he was devoured by a tiger which was only a manifestation of Shiva. Certain Tamil hymns in praise of Jina or Arhat are attributed to Appar and are most popularly sung by the Jains even to day. The hymns resemble the Tevaram in many ways perhaps they were sung by Appar during the latter period of his life.
( एन्साइक्लोपीडिया ग्राफ रिलीजन एण्ड एथिक्स हैस्टिग्स लिखितपेज ४६५)
अप्पर ने शैव सन्त बनने से बहुत पहले पाटलिका ( पाटलिपुरम् ) के मठ में जैन श्रमरण धर्म की दीक्षा ग्रहरण की थी । वर्षों तक उस मठ में रहकर जैन सिद्धान्तों का गहन अध्ययन किया था । निश्चित रूप से वह बड़ा मेधावी, वाग्मी
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