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________________ समय-समय पर जैन शासन में, जैन परम्परा में और जैन संघ में जो जो और जिस जिस भांति की विकृतियां आईं उन पर पूर्ण रूप से पूरी शक्ति के साथ प्रकाश फैंकना ही उनका परम लक्ष्य रहा है और इतिहास का और उसके लेखन का यही सही उद्देश्य है। अपने इस उद्देश्य में लेखक शत-प्रतिशत खरा उतरा है। यही महत्वपूर्ण है। इसी को महत्वपूर्ण समझकर जैन जगत के माने हुए मनीषि पं. बेचरदासजी ने भी "जैन साहित्य मा विकार थवा थी थयेली हानि" नामक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना कर इस पर विषद् प्रकाश डाला है। ग्रन्थ की भाषा प्रवाहपूर्ण है। शैली चित्ताकर्षक है और मुद्रण भी निर्दोष है। आशा है पूर्व के दो भागों की तरह यह तृतीय भाग भी जन-जन के मन को भाएगा एवं उन्हें इतिहास का नया आलोक प्रदान करेगा। सरस्वती के अमूल्य भंडार में आचार्यश्री की एवं उनके अपूर्व मार्गदर्शन में इसके प्रमुख लेखक एवं सम्पादक श्रीगजसिंहजी की यह अनमोल भेंट चिर-स्मरणीय रहेगी। देवेन्द्र मुनि शास्त्री मदनगंज-किशनगढ़ दिनाक २८.१०.१९८३ (३५) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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