________________
शंकरसेन, जसोभद्र एवं जिनभद्रगरिण के
प्राचार्यकाल के राजवंश
.. युगप्रधानाचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के युगप्रधानाचार्य काल में बल्लभी पर शीलादित्य प्रथम का राज्य था। शीलादित्य के राज्यकाल में ही उन्होंने वल्लभी में विशेषावश्यक भाष्य की रचना की।
हूरण राजवंश
जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के युगप्रधानाचार्य काल में हूण राज मिहिरकुल का मालवा और राजस्थान के अनेक हिस्सों पर राज्य था। वीर नि० सं० १०२६ के पास-पास अपने पिता मालवराज तोरमाण की मृत्यु के उपरान्त यह मालवा के राजसिंहासन पर प्रारूढ़ हना था। चीनी यात्री ह्यतसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि श्रावस्ती का राजा मिहिरकुल बौद्धों का बड़ा शत्रु था। इतिहासज्ञों का अभिमत है कि मिहिरकुल शैवमतानुयायी था। विदेशी हूण होते हुए भी उसने हिन्दूधर्म अंगीकार कर लिया था और वह शिव का परम भक्त था। मिहिरकूल बौद्ध स्तूपों और संघारामों को नष्ट कर बौद्धों को लूट लिया करता था। उसने अपने शासनकाल में बौद्ध भिक्षुत्रों को अनेक प्रकार के कष्ट दिये। वीर नि० सं० १०५६ के लगभग यशोधर्मा ने मिहिरकूल को युद्ध में करारी हार दी, इस प्रकार का उल्लेख मन्दसौर के विजयस्तम्भ पर उत्कीर्ण शिलालेख में विद्यमान है।'
"...
-
चीनी यात्री ह्य त्सांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि :
स्थागोरन्यत्र येन प्रणतिकृपणतां प्रापितं नोत्तमांगेः, यस्याश्लिष्टो भुजाभ्यां वहति हिमगिरिदुर्ग शब्दाभिमानम् । नीचस्तेनापि यस्य प्रणति भुजबलावर्जने क्लिष्ट मूर्द्धना, चूडापुष्पोपहारमिहिरकुल नृपेणाचितं पादयुग्मम् ।। (फ्लीकोरपस इन्स्क्रिप्शनम् जुडिकेरम, जिल्द ३, गुप्ता इन्सक्रिप्शन्स, पृष्ठ १४२ वर्स ६)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org