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भगवान महावीर के २६वें एवं ३०वें पट्टधर क्रमशः
श्री शंकर सेन और जसोभद्र के प्राचार्य काल के ३०३ युगप्रधानाचार्य श्री जिनभद्रगरिण क्षमाश्रमण
जन्म
वीर नि० सं० १०११
,,, १०२५
दीक्षा सामान्य साधु पर्याय युगप्रधानाचार्यकाल
, , , १०२५-१०५५
" , १०५५-१११५
..., १११५ १०४ वर्ष, ६ मास और ६ दिन
स्वर्ग
सर्वायु
युगप्रधानाचार्य श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमाण का जन्म वीर नि०सं० १०११ में हुआ। आपने १४ वर्ष की अल्प वय में, वीर नि० सं० १०२५ में श्रमणधर्म की दीक्षा ग्रहण की। ३० वर्ष की अपनी सामान्य श्रमण पर्याय में विशुद्ध श्रमरणाचार के पालन के साथ-साथ आपने आगमों, धर्मग्रन्थों, न्याय, व्याकरण, काव्य, स्व तथा पर सिद्धांतों एवं नीतिशास्त्र का बड़ी ही लगन के साथ तलस्पर्शी गहन अध्ययन किया। वीर नि०सं० १०५५ में २६वें युगप्रधानाचार्य श्री हारिलसूरि के स्वर्गस्थ हो जाने पर आपको युगप्रधानाचार्य पद प्रदान किया गया।
जीतकल्परिण के प्राद्य मंगल में, उसके रचनाकार प्राचार्य सिद्धसेन क्षमाश्रमण द्वारा की गई जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण की षड़ गाथात्मका स्तुति से यह विदित होता है कि जिनभद्रगरिण क्षमाश्रमण अपने समय के अप्रतिम उद्भट विद्वान, मुनिसमूह द्वारा सेवित, आगमों के तलस्पर्शी ज्ञान के ज्ञाता एवं व्याख्याता, बहश्रु ताग्रणी, स्व-पर सिद्धांत पारगामी आदर्श क्षमाश्रमण थे।' इसी प्रकार विशेषावश्यक तथा जीतकल्प के वृत्तिकारों ने भी आपके विशिष्ट गुणों के प्रति प्रांतरिक श्रद्धा अभिव्यक्त करते हुए आपकी स्तुति की है।
जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने जीतकल्प, सभाष्य विशेषणवती, वृहत्क्षेत्रसमास, ध्यानशतक, वृहत्संग्रहणी और वीर नि०सं० १०७६ की चैत्र शुक्ला १५, बुधवार १ पंचकल्प चूरिण
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