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विषयानुक्रमणिका
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प्रकाशकीय सम्पादकीय
दो शब्द
२५-६४
एक अवलोकन १. सिंहावलोकन २. देवर्द्धिक्षमाश्रमण से उत्तरवर्ती काल के ___ इतिहास से सम्बन्धित कतिपय तथ्य ३. वीर निर्वाण से देवर्द्धि-काल तक
श्रमण परम्परा के वास्तविक स्वरूप का संक्षिप्त परिचय हिंसा नहीं करने व न कराने का फल
जैन श्रमण का मूल आचार धर्म और श्रमणाचार के मूल स्वरूप में परिवर्तन का एक अति प्राचीन उल्लेख धर्म और श्रमणाचार के मूल स्वरूप में चैत्यवासी परम्परा द्वारा किये गये परिवर्तन
आकाश और पाताल का अन्तर ४. उत्तरकालीन धर्मसंघ में विकृतियों के प्रादुर्भाव और विकास की पृष्ठभूमि
चैत्यवासी परम्परा का उद्भव, उत्कर्ष और एकाधिपत्य चैत्यवासी परम्परा के प्रभाव के परिणाम सुविहित परम्परा प्रथम दुष्परिणाम
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