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प्राचार्य शिवशर्मसूरि
शिवशर्म सूरि नामक एक प्राचीन प्राचार्य ने 'कम्मपडि' और 'पंचम शतक' नामक दो महान उपयोगो ग्रन्थरत्नों की रचना कर सापक वर्ग पर असीम उपकार किया है । उन्होंने दृष्टिवाद के दूसरे पूर्व की पांचवीं च्यवनवस्त के चौथे कर्मप्रकृतिप्राभत में से सार निकाल कर कर्म सिद्धान्त विषयक 'कम्मपडि' नामक ग्रन्थ का निर्माण किया। वर्तमान में उपलब्ध कर्मसिद्धान्त सम्बन्धी ग्रन्थों में 'कम्मपयडि' ग्रन्थ की गणना एक सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ के रूप में की जाती है। प्राचीन जैन वांग्मय के अध्ययन से यह प्रकट होता है कि पूर्वकाल में शिवशर्मसूरि द्वारा रचित यह कम्मपयडि नामक ग्रन्थ दिगम्बर एवं श्वेताम्बर-इन दोनों ही परम्परामों में समान रूप से प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता था। इस ग्रन्थ में ४७५ गाथाएं हैं। उत्तरवर्ती काल के अनेक भाचार्यों ने "कम्मपयडि" नामक इस प्रन्थ पर भाष्य, चूर्णि और टीकाग्रन्थों की रचनाएं की हैं।
___ आचार्य शिवशर्मसूरि द्वारा रचित एक और ग्रन्थ शताब्दियों से जैन जगत् में लोकप्रिय रहा है। वह है पंचम शतक नामक "कर्मग्रन्य" । प्राचार्य शिवशर्म ने इस ग्रन्थ की रचना भी "कम्मपडिपाहड" के माधार पर की है। इस ग्रन्थ में कुल १११ गाथाएं हैं। इस पर भी अनेक विद्वान् प्राचायों ने चूरिण, टीका, भाग्य प्रादि की रचनाएं की हैं। वर्तमान में प्राचार्य शिवशर्मसूरि की ये दो रचनाएं ही उपलब्ध होती हैं । ये दोनों ही ग्रन्थ मुमुक्षुत्रों को अध्यात्म मार्ग पर अग्रसर होने में प्रकाशस्तम्भ का काम करते हैं।
प्राचार्य शिवशर्मसूरि का इससे अधिक और कोई परिचय नहीं मिलता कि उन्होंने इन दो ग्रन्थ रत्नों की रचना की। इसी कारण इनके सत्ताकाल के सम्बन्ध में विद्वानों के पास अनुमान के अलावा और कोई अवलम्बन नहीं है । कतिपय विद्वानों ने इनका समय विक्रम की तीसरी शताब्दी अनुमानित किया है तो किसी ने विक्रम की तीसरी शताब्दी के बीच का । कर्म सिद्धान्त पर उनके प्राधिकारिक अगाध ज्ञान और कम्मपड़ि की भाषा और शैली को देखते हुए प्रत्येक निष्पक्ष विचारक का, यह मानने को मन करता है कि प्राचार्य शिवशर्म पूर्व ज्ञान की व्युच्छित्ति से पूर्व के महान् तत्वज्ञ विद्वान् थे।
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