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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ३
३. विप्पमुक्क जायाए मयासंकेण, संजाय सद्धा संवेग सुतिव्वतर महंतुल्ल
संत सुहज्झवसायाणगय भत्ति बहुमाणपुव्वं निणियाण दुवालस
भत्तट्ठियेणं ४. चेइमालये जंतुविरहिरोगासे ५. भत्तिब्भर निब्भरुद्ध सिय स सीसरोमावलि पफुल्ल वयण सयवत्त
पसंत सोम थिर दिट्ठी
६. नव नव संवेग समुच्छलंत संजाय बहल घण निरन्तर अचिंत परम
सुह परिणाम विसेसुल्लसिय सजीव वीरियाणुसमय विवद्धत पमोय सुविसुद्ध सुरिणम्मल विमल थिर रढयरन्तकरणेणं
७. खिति निहिय जानु नसि उत्तमंग कर कमल मउल सोहंजलिपुडेणं
८. सिरि उसभाइ पवर-वर-धम्मतित्थयर पडिमा बिंब विणिवेसिय
नयरण माणसेगग्ग तग्गय अज्झवसाएणं
६. समयण्णु दढ चरित्तादि गुण संपनोववेय गुरु सद्दत्थ अट्ठाणुहाए
करणेक्क वद्ध लक्ख तवाहिय गुरु वयण विणिग्गयं १०. विणयादि बहुमाण परिप्रोसाणुकंपोवलद्ध ११. अणेगसोग संतावुव्वेग महावाहि वेयणा घोर दुक्ख दारिद्द किलेस
रोग जम्म जरा मरण गम्भवास निवासाइ दुट्ठ सावगागाह भीम
भवोदहि तरंडगभूयं इणमो १२. मयलागममज्झवत्तगस्स पिच्छत दोसोवहय विसिटठबद्धि परिकप्पिय
कुभणिय अघडमाण असेस हेउ दिळेंत जुत्ति विद्ध सणेक्क पच्चल
पोढस्स पंचमंगल महासुयक्खंघस्स...." १६. सव्व महामंत पवर विज्जाणं परम बीयभूयं १७. नमोअरहताणं ति १८. पढमज्झयणं अहिज्जेयव्वं । ....
(विनयचन्द्र ज्ञान भंडार, जयपुर में उपलब्ध महानिशीथ की प्रति का पृष्ठ ५३ का परा ६)
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