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________________ ३३४ ] ४४ नणु भयवं सुरवरिदेहि अविरहिं सुभत्तीए पूया ४५ ता [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग : सव्वठामेसु सक्कारे कए || सव्वहा । जइ एवं तनो बुज्झ गोयमा नीसंसयं । देस-विरय अविरयाणं तु विरिणोगम् उभयत्थवि ॥ ४६ संयम एव सव्व तित्थंकरेहिं जं गोयमा ! समायरियम् । कसिण अट्ठ कम्म खय- कारियं तु भावत्थयं प्रणुट्ठे || ४७ भवती उ गमागम जंतु फरिसणाइ पमद्दणं जत्थ | स- पर हिओवरयाणं न मरणं पि पवत्तए तत्थ ॥ ४८ तास पर हिओवरएहिं सव्वट्ठाण एसियव्वं विसेसं । जं परम सार भूयं विसेसवंतं च प्रणुट्ठेयं ॥ ४६ ता परम सार भूयं विसेसवंतं च साहु वग्गस्स । एगंतहियं पच्छं सुहावहं एय परमत्थं ॥ तं जहा : ( २० ) ५० मेरुतुंगे मरिण मंडिएक्क कंचणमए परम रम्मे । नयण मरणानंदयरे पभूय विन्नाग साइसए || Jain Education International ५१ सुसिलिट्ठ विसिट्ठ सुलट्ठ चंड सुविभत्त मुणिवेसे । बहु सिंहयण घंटा धयाउले पवर तोरण सरगाहे || ५२ सुविसाल सुवित्थिपणे पए पए पेच्छियव्व य सिरीए । मघमघमघंत इज्यंत अगरु कप्पूर चंदरणामोए || ५३ बहु विह विचित्त बहु पुप्फमाइ पूयारुहे मुपूए य । निच्च परणच्चिर नाडय स्याउले महुर मुर व सद्दाले || ५४ कुट्टत रास जण सय समाउले जिण कहा खित्त चित्तं । पकहंत कहग नच्चंत चत्त गंधव्व तूर निघोसे || ५५ एमादि गुणोवे पए पए सव्व मेइरणी वत्थे (ट्ठे ) । निय भुय विधत्त पुष्णज्जिएण नायागएण प्रत्थे || ५६ कंचरण मणि सोमारणे थंभ सहस्सूसिए सुवण्ण तले । जो कारवेज्ज जिणहरे तो वि तत्र संजमो ग्रणंत गुणोति ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002073
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2000
Total Pages934
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Parampara
File Size16 MB
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