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प्रकाशकीय
श्रमण भगवान् महावीर के शासन के कृपा प्रसाद से जैन धर्म का मौलिक इतिहास ग्रन्थमाला के इस तीसरे भाग के तृतीय संस्करण को सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल एवं जैन इतिहास समिति द्वारा संयुक्त रूप से सुविज्ञ एवं सहृदय पाठकों के कर कर-कमलों में प्रस्तुत करते हुए हमें परम सन्तोष एवं गौरव का अनुभव हो रहा है।
इतिहास के दोनों भागों का साहित्यिक जगत् में आशातीत स्वागत हुआ, इसी उत्साह से प्रेरित होकर तृतीय भाग के आलेखन का कार्य बड़ी तत्परता से प्ररम्भ कर दिया गया। एतदर्थ सर्वप्रथम मथुरा के संग्रहालय से एतद्विषयक सामग्री संग्रहीत करने का प्रयास किया गया। वहां से यथेप्सित सामग्री प्राप्त हुई, जिसका महत्वपूर्ण उपयोग इस ग्रन्थ प्रणयन में किया गया।
तदनन्तर राजस्थान प्रदेश के ही अनेकों ग्रन्थागारों एवं ज्ञान भंडारों से सामग्री एकत्रित की गई। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण सामग्री लब्धप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ पंन्यास श्री कल्याण विजयजी महाराज साहब के जालोर नगरस्थ ज्ञान भंडार से हमें प्राप्त हुई, जहां हमारे विद्वान् लेखक महोदय श्री राठौड़ ने स्वयं काफी समय तक अहर्निश अथक परिश्रम करके उपयोगी ऐतिहासिक सामग्री का आलेखनात्मक संकलन किया। पं. श्री कल्याणविजयजी महाराज सा. का इस कार्य में उन्हें हार्दिक सहयोग एवं बहुमूल्य परामर्श भी मिला । महावीर की विशुद्ध मूल परम्परा के कतिपय अज्ञात स्रोत संकेतात्मक लेखों के रूप में पं. श्री कल्याणविजयजी म.सा. की हस्तलिखित दैनन्दिनियों के संग्रह से उपलब्ध हुए।
इस शोध काल में पंन्यासजी श्री के संग्रह में "तित्थोगालि पइन्नय" नामक ग्रन्थ की एक अति प्राचीन हस्तलिखित प्रति मिली जिसके कतिपय स्थलों का सम्पादन एवं कतिपय पाठों का संशोधन स्वयं श्री पंन्यासजी ने किया था । उस प्रति के शेष सम्पादन एवं पाठ संशोधन का गुरुतर कार्य राठौड़जी के जिम्मे सौंपा गया। धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टियों से अति महत्वपूर्ण उस ग्रन्थ की गाथाओं के संशोधन, पुनरालेखन, संस्कृत छाया, उनका हिन्दी अनुवाद और उसके कतिपय निगूढ़ स्थलों पर सम्पादकीय टिपणी देने आदि का कार्य श्री राठौड़ ने प्राकृत, संस्कृत और जैन इतिहास के मूर्धन्य विद्वान् आचार्य श्री हस्तिमलजी म.सा. के कृपापूर्ण कुशल निर्देशन में प्रारम्भ कर निर्विघ्न सम्पन्न किया । अति वयोवृद्ध पं. श्री कल्याणविजयजी म.सा. की विद्यमानता में ही उस ग्रन्थ का
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