________________
आशीर्वचन
( आचार्य श्री हस्तीमलजी महाराज सा.) (प्रथम संस्करण से उद्धृत)
जैन इतिहास की गवेषणापूर्वक जो महत्वपूर्ण सामग्री, "जैन धर्म का मौलिक इतिहास" ग्रन्थमाला के पूर्व प्रकाशित दो भागों एवं इस तृतीय भाग में, इतिहास समिति ने पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत की है, उसके सम्बन्ध में इतिहासप्रेमी जो भी आवश्यक हो उचित मार्गदर्शन करते रहेंगे।
लेखक और सम्पादक मण्डल ने जिस उत्साह और लगन से इस तृतीय भाग के लेखन कार्य को सम्पन्न किया है उसी प्रकार शेष रहे ऐतिहासिक तथ्य भी तटस्थ दृष्टि से गवेषणा कर प्रस्तुत करने में तत्पर रहेंगे, यही हार्दिक शुभेच्छा है।
पाठकगण हंस दृष्टि से नीर क्षीर विवेकपूर्वक तथ्यों का अवलोकन करते हुए लेखक और सम्पादकों के उत्साह को बढ़ावेंगे और अपनी गुण ग्राहक दृष्टि का परिचय देंगे, ऐसी आशा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org