SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 904
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७७४ . जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [साध्वी-परम्परा भगवान् की प्रथम शिष्या चन्दनबाला भगवान् के निर्वाण से पूर्व ही मुक्त हुई अथवा पश्चात् - इस सम्बन्ध में भी श्वेताम्बर तथा दिगम्बर - दोनों परम्परामों के किसी ग्रन्थ में कोई उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता। भगवान् के निर्वाण के पश्चात् भगवान् की ३६,००० साध्वियों में से बहुत-सी साध्वियां निश्चित रूप से विद्यमान रही होंगी, पर उनमें से किसी एक का भी नामोल्लेख निर्वाणोत्तर काल के जैन वाङमय में उपलब्ध नहीं होता। न कहीं इस प्रकार का कोई एक भी उल्लेख दृष्टिगोचर होता है कि निर्वाण के तत्काल पश्चात् अथवा वीर नि० सं० १ से १००० तक की सुदीर्घ कालावधि में साध्वी संघ की प्रवर्तिनियां कौन-कौन रहीं। ___वीर नि० सं० १ में दीक्षित हुए प्रार्य जम्बूस्वामी की दीक्षा के प्रसंग में आचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व में उल्लेख किया है कि जम्बूकुमार की माता, पत्नियों और सासुमों (सासों) को प्रार्य सुधर्मा ने श्रमणी धर्म की दीक्षा प्रदान कर उन्हें साध्वी सुव्रता की आज्ञानुवर्तिनी बनाया। साध्वी सुव्रता साध्वियों के किसी संघाटक की मुख्या थी अथवा सम्पूर्ण श्रमणी संघ की प्रवर्तिनी, इस सम्बन्ध में परिशिष्ट पर्व में कोई संकेत नहीं किया गया है। परिशिष्ट पर्व में उपर्युक्त विवरण के पश्चात् उल्लेख किया गया है कि ५१० पुरुषों और १७ महिलाओं, कुल मिलाकर ५२७ मुमुक्षुत्रों के साथ जम्बूकुमार को दीक्षित करने के पश्चात् आर्य सुधर्मा अपने शिष्यों को साथ लिये प्रभु महावीर की सेवा में पहुंचे। परिशिष्टपर्वकार द्वारा किया गया यह उल्लेख प्रामाणिक नहीं माना जा सकता क्योंकि श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों ही परम्परामों के सभी मान्य ग्रन्थों में वीर निर्वाण के पश्चात् जम्बूकुमार के दीक्षित होने का उल्लेख है। परम्परागत मान्यता भी यही रही है कि जम्बूकुमार ने वीर निर्वाण के पश्चात् वीर नि० सं० १ में किसी समय दीक्षा ग्रहण की। परिशिष्ट-पर्वकार द्वारा किये गये इस वीर नि० विषयक उल्लेख के संशयास्पद सिद्ध होने की स्थिति में परिशिष्ट पर्व में किये गये उस उल्लेख पर भी पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता, जिसमें कि श्रमणी समूह की मुख्या साध्वी का नाम सुव्रता बताया गया है । यह पहले बताया जा चुका है कि साधु समाज की तरह साध्वी समाज ने भी मानवता पर अनेक महान् उपकार किये हैं। सहज करुणा-कोमल-हृदय सती. वर्ग के उद्दात्त चारित्र और हितप्रद मधुर उपदेशों से मानव समाज सदा साधना के सत्पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणाएं लेता रहा है। प्रार्य महागिरि, आर्य सुहस्ती, आर्य वज्र एवं याकिनी महत्तरासून प्राचार्य हरिभद्र प्रादि महान् प्रभावंक प्राचार्य जिस प्रकार जिन-शासन की उत्कट सेवा और जनकल्याण के महान् कार्य करने में सफल हुए, वह सब मूलतः साध्वी-समाज की ही देन रही है। इन सब वास्तविकताओं को दृष्टिगत रखते हुए निर्वाणोत्तर काल की. साध्वी-परम्परा की जितनी अधिक महत्तरामों, प्रतिनियों, स्थविरामों के जीवन का परिचय दिया जाय, वह केवल साधकों ही नहीं अपितु समस्त मानव-समाज के लिये उतना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy