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________________ साध्वी-परम्परा] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण ७७३ । महाप्रजापति के उपर्युक्त प्राख्यान और भगवान् महावीर द्वारा तीर्थस्थापना के दिवस की तात्कालिक वेला में ही चन्दनबाला आदि नारियों को श्रमणी धर्म में दीक्षित किये जाने के विवरण से यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि गौतम बुद्ध को व्यावहारिक भूमिका ने छू लिया था और तीर्थंकर महावीर को वह व्यावहारिक भूमिका किंचित्मात्र भी छू नहीं सकी। तीर्थंकर अनुस्रोतगामी नहीं होते। वे तो सत्यविमुख रूढ परम्परामों, अंधश्रद्धानों और निस्सार-थोथी मान्यतामों का उन्मूलन कर एक नूतन क्रान्तिकारी प्राध्यात्मिक संस्कृति की प्रतिष्ठापना करते हैं। ऐसे महापुरुष भला लोक-प्रवाह में कैसे बह सकते हैं ? सर्वज्ञसर्वदर्शी प्रभु महावीर ने स्व-पर-कल्याणकारी धर्माराधना-अध्यात्म साधना के क्षेत्र में तत्वतः पुरुष और नारी जैसा कोई भेद न रख कर साधना की सापवाद (देशविरति) और निरपवाद (सर्वविरति.)-इन दोनों विधामों अर्थात् श्रावकश्राविका धर्म एवं साधु-साध्वी धर्म के अनुसरण-अनुपालन के लिये पुरुष तथा नारी वर्ग का समान रूप से आह्वान किया। यह वस्तुतःभगवान् महावीर की महावीरता थी। इसका परिणाम भी अतीव श्रेष्ठ और परम सुखावह रहा । नारी वर्ग ने यह सिद्ध कर दिया कि आत्मा के अभ्युत्थान के लिये अध्यात्म-साधना-पथ का अवलम्बन करने की नारी भी पुरुष के समान पूर्ण प्रधिकारिणी है, प्रबुद्ध पुरुष की तरह प्रबुद्धा नारी भी उत्कट संयम का पालन और सर्वोच्च त्याग करने में सर्वतः सक्षम है। भगवान महावीर द्वारा तीर्थ-प्रवर्तन काल से लेकर आज तक का जैन धर्म का इतिहास इस बात का साक्षी है कि श्रमरणी-धर्म में दीक्षित नारियों ने जिस बड़ी संख्या में, जिस अद्भुत प्रात्मबल, प्रबल साहस और उत्कट उत्साह के साथ संयमका निर्वहन तथा धर्म का प्रचार-प्रसार किया, एवं कर रही हैं, वह, संख्या आदि कतिपय दृष्टियों से पुरुष-साधकों की अपेक्षा कुछ बढ़कर ही कहा जा सकता है । भगवान् महावीर की विद्यमानता में ३६,००० नारियों ने प्रभु के उपदेशों से प्रबुद्ध हो साध्वी-धर्म की दीक्षा अंगीकार की। उनमें से अनेक के साध्वीजीवन का प्रेरणाप्रदायी विशद विवरण प्रागम ग्रन्थों में उपलब्ध होता है। काली प्रादि महासतियों के प्रति कठोर तपश्चरण का जो वर्णन पागम में उल्लिखित है, उसे पढ़कर प्रबल मनोबल वाले पाठकों के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं और उन उत्कट साधिकारों के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा से मस्तक सहसा स्वतः ही झुक जाते हैं। वस्तुतः साध्वियों का जीवन भी साधक-साधिकारों के लिये बड़ा प्रेरणादायक और दिशानिर्देशक है। वीर निर्वाण सं० १ से १००० तक की प्राचार्य परम्परा का जिस प्रकार विस्तृत परिचय प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, उसी प्रकार उस काल की साध्वी-परम्परा का परिचय भी प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है किन्तु वीर निर्वाण पश्चात् की साध्वी-परम्परा का क्रमबद्ध इतिहास देना तो दूर एक बहुत बड़ी कालावधि में हुई साध्वियों के नाम तक अाज समस्त जैन साहित्य का मालोड़न करने पर भी उपलब्ध नहीं होते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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