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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग [ प्रज्ञा० और षट्खण्डागम इस दृष्टि से कि भविष्य में कहीं ग्रन्थकार के सम्बन्ध में भ्रान्ति न हो जाय, दूसरी और तीसरी गाथा के बीच में निम्नलिखित दो गाथाएं रख दीं :तेबीसइमेण धीरपुरिसेण । वायगरवसा दुद्धरधरेण मुणिणा, पुव्वसुयसमिद्धबुद्धीरण || १ || सुयसागरा विरऊरण जेरण सुयरयरणमुत्तमं दिण्णं । सीगरणस्स भगवो तस्स नमो प्रज्जसामस्स ||२|| ७०५ अर्थात् - वाचकश्रेष्ठों (वाचनाचार्यों) के वंश में हुए पूर्वश्रुत - ज्ञान से समृद्ध बुद्धि वाले मुनियों में अधिक गहन ज्ञान धारण करने वाले जिनतेवीसमें धीर मुनिवर ने प्रथाह श्रुतसागर से सूत्र रत्न निकाल कर शिष्यगरण को दिया, उन आर्य श्याम को नमस्कार है । तीसरी गाथा में प्राये हुए "अहमवि' की परिचायक ये दो अन्य कर्तक गाथाएं किसी ने बहुत सोच विचार के पश्चात् उचित स्थान पर ग्रन्थ के मूल भाग में रखी हैं । हरिभद्रसूरि और मलयगिरि ने पन्नवरणा की स्वनिर्मित वृत्तियों में इन दोनों गाथाओं को स्थान देकर अन्यकर्तृक अथवा प्रक्षिप्त बताते हुए इनकी व्याख्या की है । प्राचार्य हरिभद्र वस्तुतः धवलाकार प्राचार्य वीरसेन से लगभग १२५ वर्ष पूर्व हुए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि ये गाथाएं विक्रम की ८ वीं शताब्दी से बहुत पूर्व की हैं। यह भी संभव है कि श्यामार्य के किसी शिष्य ने उनके जीवन काल में अथवा कुछ समय पश्चात् ही इन गाथाओं को पन्नवरणा के प्राद्य मूल पाठ के साथ जोड़ दिया हो । २. दूसरा प्रमाण हिमवन्त स्थविरावली का प्रस्तुत किया जाता है, जो इस प्रकार है : *-- 'समरणारणं' गिग्गंठारणं' रिगंठीणं' य जिरणपवयरणसुलहबोहट्ठ' रणं अज्जसामेहिं' थेरेहिं य तत्थ पण्णवरणा परूविया । " ग्रर्थात् श्रमरण निर्ग्रन्थों एवं निर्ग्रन्थनियों को जिन - प्रवचनों का सुगमतापूर्वक बोध कराने के उद्देश्य से स्थविर प्रार्य श्याम ने "पन्नवरणा" नामक सूत्र की प्ररूपणा की । पट्खण्डागम का निर्माण पुष्पदंत और भूतबलि ने धरसेन से ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् किया, दिगम्बर परम्परा की इस परम्परागत मान्यता की पुष्टि में मुख्य रूप से धवला और इन्द्रनन्दीकृत श्रुतावतार के निम्नलिखित उद्धरण प्रस्तुत किये जाते हैं : १. तदो सव्वेसिमंगपुव्वाणमेगदेसो आइरिय - परंपराएं आगच्छमारणो धरसेरगायरियं संपत्तो । ( षट्खण्डागम, जीवट्ठाण (धवला ), भा० १, पृ० ६८ ) . पुरणो तेहिं धरसेरण भयवंतस्स जहावित्तेण विरगए णिवेदिदे सुट्ठ हिमवन्त स्थविरावली, हस्तलिखित । , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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