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________________ चन्द्रगुप्त द्वितीय ] 'सामान्य पूर्वधर - काल : प्रायं भूतदिन ६६६ कुछ विद्वानों ने कवि की इस व्यंगोक्ति को भी ध्रुवस्वामिनी और शर्म के साथ गुप्त शब्द को देख कर तथाकथित रामगुप्त और ध्रुवस्वामिनी के कथानक के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। हालांकि राजशेखर ने चन्द्रगुप्त द्वारा खसराज को मार कर ध्रुवस्वामिनी के लौटाने और अपनी महादेवी बनाये जाने का कोई उल्लेख नहीं किया है । उपरिचित उद्धरणों के आधार पर रामगुप्त का कथानक इस प्रकार बनता है : “गुप्तसम्राट् चन्द्रगुप्त के पश्चात् कायर एवं बुद्धि विहीन रामगुप्त गुप्त साम्राज्य का स्वामी बना । उस पर शकराज ने आक्रमण किया । डरपोक रामगुप्त पराजित हुआ । उसने शकराज के साथ सन्धिवार्ता की और अपनी सती साध्वी महारानी ध्रुवदेवी ( ध्रुवस्वामिनी) को शकराज की सेवा में प्रस्तुत करना स्वीकार कर लिया। रामगुप्त का अनुज चन्द्रगुप्त (द्वितीय) स्त्रीवेष धारण कर ध्रुवदेवी का स्वांग बनाये शकराज के शिविर में पहुँचा । कामुक शकराज ध्रुवदेवी से मिलने की उत्कण्ठा लिये ज्यों ही एकान्त कक्ष में पहुँचा त्यों ही स्त्रीवेषधारी चन्द्रगुप्त ने सिंह की तरह झपट कर शकराज को मौत के घाट उतार दिया । तदनन्तर अवसर पाकर चन्द्रगुप्त ने अपने बड़े भाई रामगुप्त की भी गुप्त रूप से हत्या करवा दी। अपने पति की मृत्यु के पश्चात् ध्रुवदेवी ने चन्द्रगुप्त के साथ विवाह ( विधवा विवाह ) कर लिया। इस प्रकार चन्द्रगुप्त (द्वितीय) गुप्तसाम्राज्य का स्वामी बना ।" मुख्यतः लोकरंजन के लिये बनाये गये नाटक 'देवी चन्द्रगुप्तम्' में वरिणत रामगुप्त का उपरोक्त कल्पित कथानक ज्यों-ज्यों समय व्यतीत होता गया, त्यों-त्यों विकृत होता गया । ईसा की १२वीं शताब्दी के अरबी ग्रन्थ 'मुजमलुत् तवारीख' में इस कथानक ने विकृत होते-होते निम्नलिखित रूप धारण कर लिया : "भारत में रव्वल नामक एक राजा था । उसके छोटे भाई बरकमारिस द्वारा स्वयंवर में प्राप्त एक राजकुमारी के रूप पर मुग्ध हो रब्बल ने उसके साथ विवाह कर लिया। इस घटना के पश्चात् बरकमारिस अध्ययन में जुट गया और वह एक उच्चकोटि का विद्वान् बन गया । रव्वल के पिता के शत्रु ने प्राक्रमरण कर रव्वल को पराजित किया । रव्वल ने अपने परिवार एवं परिजनों के साथ पर्वत की चोटी पर बने एक दुर्ग में शरण ली और शत्रु से सन्धि की प्रार्थना की । शत्रु द्वारा रखी गई सन्धि की शर्त के अनुसार ख्वल ने अपनी उस रानी श्रीर सामन्तों की पुत्रियों को शत्रु के समर्पित करना स्वीकार किया। बरकमारिस ने राजा की आज्ञा से एक चाल चली । सामन्तपुत्रों सहित स्त्रीवेष धारण कर उसने स्वयं ने रानी का और शेष युवकों ने सामन्तपुत्रियों का स्वांग बनाया। उन सबने अपने परिधानों में एक एक शस्त्र छुपा लिया। बरकमारिस ने अपने स्त्रीवेषधारी सब साथियों को समझा दिया कि शत्रु राजा को मौत के घाट उतारने के पश्चात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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