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गुप्त राजवंश] सामान्य पूर्वधर-काल : प्रार्य सिंह युगप्र०
६४७ इस विषय में भी मतैक्य है कि गुप्त राजवंश का प्रादि संस्थापक श्रीगुप्त था। श्रीगुप्त के सत्ताकाल को निश्चित रूप से निर्णीत करने वाले प्रभिलेखादि अभी तक भारत में उपलब्ध नहीं हुए हैं। ई० सन् ६७२ में इ-त्सिग नामक एक चीनी यात्री भारत में पाया। उसके भारत यात्रा के विवरण श्रीगुप्त के सत्ताकाल पर थोड़ा प्रकाश डालते हैं। इ-त्सिग ने अपने भारत-भ्रमण के विवरण में ई० सन् ६६० में लिखा है कि ५०० वर्ष पूर्व श्रीगुप्त ने चीनी तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिये मृगशिखावन के समीप एक मन्दिर का निर्माण करवा उसके व्ययभार को वहन करने के लिये २४ गाँव प्रदान किये। इत्सिग ने लिखा है कि मृगशिखावन नालन्दा से पूर्व में ५० स्टेग (अनुमानतः २५० मील) दूर, गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। नालन्दा को इत्सिग ने महाबोधि से उत्तर-पूर्व में ७ स्टेग (लगभग ३५ माइल) दूरी पर अवस्थित बताया है। ... . इ-त्सिग के उपरिलिखित उल्लेखानुसार मगधराज श्रीगुप्त का समय ई० सन् १६० के प्रासपास का और उसके राज्य की सीमा नालन्दा से आधुनिक मुर्शिदाबाद तक होना अनुमानित किया जाता है । श्रीगुप्त के सत्ताकाल के सम्बन्ध में प्रसिद्ध इतिहासकार राधाकुमुद मुकर्जी का अभिमत है कि गुप्त राजवंश के सम्पूर्ण शासनकाल पर गहराई से विचार करने पर श्रीगुप्त का सत्ताकाल ई० सन् १६० के स्थान पर ई० सन् २४० से २८० तक का अनुमानित किया जाता है। क्योंकि श्रीगुप्त के शासनकाल से ५०० वर्ष पश्चात् जनश्रुति के आधार पर एक विदेशी द्वारा उल्लिखित समय में थोड़ा फरक पाना अवश्यम्भावी है।'
गुप्त महाराजा किस जाति अथवा वंश के थे - इस प्रश्न का समुचित समाधान गुप्त सम्राटों के किसी भी अभिलेख से नहीं होता। पाकाटक महाराजा रुद्रसेन द्वितीय की महारानी प्रभावती गुप्ता (चन्द्रगुप्त : द्वितीय : विक्रमादित्य की पुत्री) के पूना के ताम्रपत्रीय अभिलेख में गुप्त राजामों का 'धारण' गोत्र बताया गया है।
गुप्तवंश के प्रादि संस्थापक श्रीगुप्त की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र घटोत्कच मगध के राज्य सिंहासन पर बैठा । इतिहासज्ञों द्वारा इसका शासनकाल वीर नि० सं० ८०७ से ८४६ (ई० सन् २००-३१९) अनुमानित किया जाता है पर इसके पुत्र चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा भनेक राज्यों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् वीर नि० सं० ८४६ में गुप्त संवत् प्रचलित किये जाने की ऐतिहासिक घटना को दृष्टि में रखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वीर नि० सं० ८४६ से कुछ वर्ष पहले ही इसका देहावसान हो चुका था।
सम्राट् चन्द्रगुप्त (द्वितीय) के शासनकाल में श्री घटोत्कचगुप्त नामक वैशाली का शासक (मुक्ति अधिकारी) था। उसके नाम के मुद्रालेख प्राप्त हुए हैं। • The Gupta Empire, by Radhakumud Mookerji, p. 11
वाकाटक नृपति दिवाकरसेन और दामोदर-प्रवरसेन की माता एवं अभिमाविका का पूना • का ताजपत्राभिलेख ।
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