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________________ ६२८ जन-धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [चत्यवास कि उत्तम मुनियों को कलिकाल में वनवास नही करना चाहिये । जिनमन्दिरों और विशेष कर ग्रामादि में रहना ही उनके लिये उचित है।' अनुमान किया जाता है कि दिगम्बर मुनियों ने वि० सं० ४७२ में वनवास छोड़ कर "निसीहि" आदि में रहना प्रारम्भ किया हो एवं उसमें विकृति होने पर वि० सं० १२१६ के पश्चात् मठवास चालू हुअा हो और उनमें रहने वाले मठवासी भट्टारक कहे जाने लगे हों।। ... . उपलब्ध साहित्य के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि विक्रम संवत् “१२८५ से "चैत्यवास" सर्वथा बन्द हो गया और मुनियों ने उपाश्रय में उतरना प्रारम्भ कर दिया। यथास्थान इस विषय में विशेष प्रकाश डाला जायगा। तत्कालीन राजनैतिक स्थिति - आर्य रेवतीनक्षत्र के समय की राजनैतिक स्थिति के सम्बन्ध में कुछ खिने से पूर्व उस समय से पहले की राजनैतिक स्थिति पर थोड़ा प्रकाश डालना आवश्यक है। यह पहले बताया जा चुका है कि पुष्यमित्र शुंग के राज्यकाल में बेक्ट्रिया के यूनानी राजा डिमिट्रियस ने एक प्रबल सेना लेकर भारत पर आक्रमण किया। मथुरा, साकेत आदि प्रदेशों को विजित करने के पश्चात् उसने पाटलिपुत्र पर भी आक्रमण किया। किन्तु उसी समय उसे उसके घर में गृहकलह होने तथा यूक्रेटाइडीज द्वारा उसके राज्य पर अधिकार कर लिये जाने की सूचना मिली। अतः उसे तत्काल अपने दलबल सहित बेक्ट्रिया की ओर लौटना पड़ा। वहाँ गृहकलह में उसकी मृत्यु हो गई। डिमिट्रियस की मृत्यु के पश्चात् उसके निकटतम सम्बन्धी मेनेण्डर ने भारत पर आक्रमण किया। उसके पास पर्याप्त धन और शक्तियाली विशाल सेना थी। मेनेण्डर ने पंजाब पर अधिकार कर साकल अर्थात् स्यालकोट में अपनी राजधानी स्थापित की। पंजाब-विजय के समय मेनेण्डर का अनेक बौद्ध भिक्षुषों से साक्षात्कार हुना। उसने एक बौद्ध प्राचार्य से अध्यात्म और दर्शन. विषयक अनेक प्रश्न किये । बौद्धाचार्य से अपने प्रश्नों का संतोषप्रद उत्तर सुन कर वह बड़ा प्रभावित हुआ और उसने बौद्ध धर्म अंगीकार कर लिया। इतिहासज्ञों का अनुमान है कि 'मिलिन्दपन्हो' नामक बौद्ध धर्मग्रन्थ मेनेण्डर के प्रश्नों और बौद्धाचार्य नागसेन द्वारा दिये गये उन प्रश्नों के उत्तर के आधार पर बना हुआ है। बौद्ध ग्रन्थों में मेनेण्डर को मिलिन्द के नाम से अभिहित किया गया है। मिलिन्द ने बौद्धधर्म को राज्याश्रय देकर उसके प्रचार-प्रसार में पर्याप्त सहायता प्रदान की। ... पंजाब में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के पश्चात् मिलिन्द (मेनेण्डर) ने सिन्ध की राह से भारत-विजय का अपना अभियान प्रारम्भ किया। काठियावाड़, 'कलो काले वने वासो, वय॑ते मुनिसत्तमैः । स्थीयते व जिनागारे, प्रामादिषु विशेषतः ॥२२॥ [रलमाला] 2: Tbe Gupta Empire, by Radhakumud Mookerji, page 3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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