SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • ४६६ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [श्यामाचार्य इतिहास के विशेषज्ञ मुनि कल्याणविजयजी ने भी आर्य श्याम को ही प्रथम कालकाचार्य माना है। "रत्नसंचयप्रकरण' के एतद्विषयक उल्लेख पर टिप्पण करते हुए मुनिजी ने लिखा है - "जहां तक हमने देखा है श्यामाचार्य नामक प्रथम कालकाचार्य का सत्ताकाल सर्वत्र, निर्वाण सं० २८० में जन्म, ३०० में दीक्षा, ३३५ में युगप्रधानपद और ३७६ में स्वर्गगमन लिखा है।" पनवणा सूत्र के प्रारम्भ में आर्य श्याम की स्तुतिपरक उपरोक्त दो गाथाओं में श्यामाचार्य को वाचकवंश का २३ वां पुरुष बताया गया है पर पट्टक्रमानुसार यह संख्या मेल नहीं खाती। क्योंकि आर्य सुधर्मा से आर्य श्याम पट्टपरम्परा में १३ वें प्राचार्य होते हैं। विचारश्रेणी में इस समस्या का समाधान करते हुए बताया गया है कि वाचकवंश में गणधरों को सम्मिलित कर आर्य श्याम को तेबीसवां वाचक समझना चाहिए । टीकाकार ने भी - "वाचकाः पूर्वविदः" इस पद से वाचक का अर्थ पूर्वविद् किया है। उन गाथाओं में स्तुतिकार ने गणधरों की भी वाचकों में गणना करते हुए श्यामार्य को २३ वां वाचक बताया है ।' आचार्य मेरुतुंग का यह कथन शतप्रतिशत युक्तिसंगत है । वस्तुतः गणधरों की जीवनचर्या में एक तरह से आगमवाचना देने का प्राधान्य रहता है। इस दृष्टि से यदि इन्द्रभूति आदि गणधरों को वाचक कहा जाय तो इसमें अनौचित्य के लिए कोई अवकाश नहीं रहता। इस दृष्टिकोण से पन्नवरणा के प्रारम्भ में मंगलाचरण के पश्चात् दो गाथाओं में स्तुतिकार द्वारा प्रार्य श्याम को वाचकवंश का २३ वां धीर पुरुष बताना संगत ही है। १२ वें युगप्रधानाचार्य प्रार्य श्याम वाचनाचार्य प्रार्य श्याम के परिचय में ऊपर यह बताया जा चूका है कि कि आर्य स्वाति के पश्चात् १३ वें वाचनाचार्य के पद पर तथा प्रार्य गुणसुन्दर के पश्चात् १२ वें युगप्रधानाचार्य के पद पर आर्य श्याम को नियुक्त किया गया। वीर नि० सं० ३३५ से ३७६ तक इन दोनों महत्वपूर्ण पदों पर निरन्तर ४१ वर्ष तक रह कर आर्य श्याम ने शासन की महती सेवा की। प्रार्य श्याम के प्राचार्यकाल की राजनैतिक एवं धार्मिक स्थिति १३ वें वाचनाचार्य तथा १२ वें युगप्रधानाचार्य - इन दोनों पदों को विभूषित करने वाले आर्य श्याम के आचार्यकाल में पुष्यमित्र ने वैदिक धर्म को राज्याश्रय दिया। इसके परिणामस्वरूप यज्ञ-यागादि वैदिक कर्मकाण्ड का प्रचारप्रसार बढ़ने लगा। पुष्यमित्र ने अनुमानतः वीर नि० सं० ३३० से ३४० के बीच के किसी समय में अश्वमेध यज्ञ किया। हरिवंश पुराण में इस घटना की ओर सिद्धान्ते श्री. वीरादन्वेकादशगणभृद्भिः सह त्रयोविंशतितमः पुरुषः श्यामार्य इति प्यास्पातः। [विचारश्रेणी] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy