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________________ ४६४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग [१२, आर्य स्वाति द्वारा प्राकृत भाषा में सर्वप्रथम तत्वार्थसूत्र के संक्षिप्त मूलस्वरूप का प्रणयन. किया गया हो । हिमवन्तस्थविरावली के उल्लेखों से यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि प्रार्य बलिस्सह के समय से अंगविद्या के ग्रंथों के पृथकतः प्ररणयन की प्रवृत्ति का प्रारम्भ हुआ ।' ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रकार की प्रवृत्ति तत्वजिज्ञासुत्रों में काफी लोकप्रिय रही और उनकी प्रार्थना पर अथवा स्वतः भव्यजनहितार्थ आगमों से तत्वज्ञान को उद्धृत कर सरल एवं सुबोध्य प्राकृत शैली में तत्वार्थसूत्र की रचना की हो । कालान्तर में उसी तत्वार्थसूत्र को उमास्वाति ने परिवर्द्धित कर संस्कृत भाषा में प्रस्तुत किया हो । वस्तुतः तत्वार्थसूत्र की रचना श्रार्यस्वाति ने की अथवा उमास्वाति ने यह प्रश्न पर्याप्त शोध की अपेक्षा रखता है । केवल नामसाम्य की युक्ति देकर इसे टाल देना उचित नहीं । स्वाति का आचार्यकाल कब प्रारम्भ हुआ, इस सम्बन्ध में किसी निश्चित काल का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। फिर भी आर्य बलिस्सह के परिचय में दिये गये उनके स्वर्गारोहण के अनुमानित काल के आधार पर यह खयाल किया जाता है कि वीर नि० सं० ३२६ में आर्य स्वाति वाचनाचार्य पद पर नियुक्त किये गये । इस प्रकार आर्य स्वाति का वाचनाचार्यकाल वीर नि० सं० ३२६ से ३३५ तक रहा । आपके वाचनाचार्य काल में आर्य गुरणसुन्दर युगप्रधानाचार्य और सुस्थित सुप्रतिबुद्ध गरणाचार्य रहे । १३. श्यामाचार्य ( कालकाचार्य) वाचनाचार्य नन्दी सूत्र की स्थविरावली में वाचनाचार्य स्वाति के पश्चात् उन्हीं के शिष्य आर्य श्यामाचार्य को वाचनाचार्य माना गया है । प्रभावक चरित्र तथा कालकाचार्य-प्रबन्ध में श्यामाचार्य को आचार्य गुणाकर के पश्चात् युगप्रधानाचार्य बताया गया है । यही पहले कालकाचार्य हैं । इस प्रकार आर्य श्यामाचार्य वाचकवंश और युगप्रधान - परम्परा - दोनों के आचार्य माने गये हैं । श्यामाचार्य का जन्म वीर नि० सं० २८० में हुआ । श्रापने वीर नि० सं० ३०० में २० वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण की । ३५ वर्ष तक श्रमरणधर्म की साधना के पश्चात् वीर नि० सं० ३३५ में आपको वाचनाचार्य श्रौर युगप्रधान पद प्रदान किया गया । ४१ वर्ष तक वाचनाचार्य एवं युगप्रधानाचार्य पद पर रहते हुए अपने जिनशासन की महती सेवा और प्रभावना की । वीर नि० सं० ३७६ में आपने ६६ वर्ष की आयु पूर्ण कर स्वर्गारोहण किया । श्यामाचायं अपने समय के, द्रव्यानुयोग के प्रकाण्ड विद्वान् थे । इन्हीं श्यामाचार्य को निगोदव्याख्याता प्रथम कालकाचार्य माना गया है । इस सम्बन्ध ' बलिरसह शिष्याः स्वात्याचार्याः श्रुतसागरपारगास्तत्वार्थ सूत्राख्यं शास्त्रं विहितवन्तः । तेषां शिष्यं रायंश्यामः प्रज्ञापना प्ररूपिता । [ हिमवन्त स्थविरावली ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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