SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [कलिं० महामेघ० खार० पति सुलोचन के पास चला गया। सुलोचन के कोई पुत्र नहीं था अतः उसने अपने जामाता शोभनराय को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। तदनुसार सुलोचन की मृत्यु के पश्चात् शोभनराय कलिंग के सिंहासन पर बैठा। चेटक के पुत्र शोभनराय की दशवीं पीढ़ी में खारवेल हुआ। इस प्रकार खारवेल के शिलालेख में विद्यमान 'चेतराजवसवधनेन' इस संदिग्ध वाक्यांश को हिमवन्त स्थविरावली में पूर्णतः स्पष्ट कर दिया गया है। (३) हाथीगुफा के शिलालेख में जायसबालजी के वाचन के अनुसार अंगशास्त्रों के उद्धार से सम्बन्धित केवल इतना ही उल्लेख है कि - मौर्यकाल में विच्छिन्न हुए ६४ अध्याय वाले अंगसप्तिक का चौथा भाग फिर से तैयार करवाया ।' (४) हिमवन्त स्थविरावली में अंग-शास्त्रों के उद्धार के सम्बन्ध में स्पष्ट उल्लेख के साथ-साथ यह भी बताया गया है कि कुमारगिरि पर खारवेल द्वारा आयोजित उस चतुर्विध संघ के सम्मेलन में किन-किन श्रमणों, श्रमणियों, श्रावकों और श्राविकाओं ने भाग लिया। इसमें बताया गया है कि प्रार्य बलिस्सह आदि जिनकल्पियों की तुलना करने वाले२०० श्रमणों, प्रार्यसुस्थित प्रादि ३०० स्थविरकल्पी साधुओं, प्रार्या पोइगी आदि ३०० श्रमरिगयों, भिक्षराज, सीवंद, चूर्णक, सेलक आदि ७०० श्रावकों और पुर्णमित्रा (खारवेल की अग्रमंहिषी) आदि ७०० श्राविकाओं ने कुमार गिरि पर हुए उस सम्मेलन में भाग लिया । भिक्खुराय की प्रार्थना पर उन स्थविर श्रमरणों एवं श्रमणियों ने अवशिष्ट जिनप्रवचन को सर्वसम्मत स्वरूप में भोजपत्र, ताड़पत्र वल्कल प्रादि पर लिखा और इस प्रकार वे सुधर्मा द्वारा उपदिष्ट द्वादशांगी के रक्षक बने । हाथीगुंफा वाले खारवेल के शिलालेख में ऐसे किसी निश्चित संवत् का उल्लेख नहीं किया गया है जिससे कि खारवेल. के सत्ताकाल का असंदिग्ध रूप से निर्णय किया जा सके। फिर भी उसमें कुछ ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख किया गया है, जिनसे खारवेल का सत्ताकाल निश्चित करने में बड़ी सहायता मिलती है। खारवेल के उपरिचर्चित हाथोगुंफा वाले शिलालेख की सातवीं पंक्ति के अंत में तथा आठवीं पंक्ति में लिखा है कि खारवेल ने अपने राज्य के पाठवें वर्ष में एक बहुत बड़ी सेना ले गोरथ गिरि को तोड़कर राजगृह नगर को घेर लिया। खारवेल की शौर्यगाथाओं के शंखनाद को सुनकर यवनराज डिमित-डिमिट्रियस ' मुरियकालवोच्छिन्नं च चोयठि अंग सतिकं तुरियं उपादयति । [खारवेल का शिलालेख] २ इह तेणं णिवेणं चोइएहिं तेहि थेरेहिं अजि- प्रसिठं जिणपवयणं दिठिवायं रिणग्गंठगणाप्रो योवं थोवं साहिइता मुज्ज लाइपत्तेसु प्रक्खरसत्रिवायोवयं .कारइत्ता भिवखुरायणियमरणोरहं पूरिता प्र वएसियदुवालसंगीरक्खमा ते संजाया । रेमवन्त स्पविरावनी] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy