SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 613
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८३ कलि० महामेघ० खार०] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य बलिस्सह सैनिक अभियान करने वाले राजाओं की गणना नहीं की जा सकती। ऐसे उदाहरणों से विश्व के इतिहास भरे पड़े हैं। किन्तु दूसरे राज्य के शक्तिशाली राजा द्वारा किये गये अत्याचारों से संत्रस्त स्वधर्मी प्रजा के कारण के लिये युद्ध का खतरा उठाने के उदाहरण विरले ही दृष्टिगोचर होते हैं। महाराजा खारवेल ने न केवल जैनधर्म और जन संस्कृति के विकास के लिये अपना अमूल्य योगदान देकर कलिंग की कीति में अभिवृद्धि की अपितु उन्होंने मगध राज्य की जैन प्रजा और निग्रंथ श्रमणों पर पाशविक अत्याचार करने वाले मगधपति पुष्यमित्र शंग (अपरनाम बृहस्पतिमित्र) पर दो बार प्राक्रमण कर उसे दण्डित एवं पराजित किया।' विगत अनेकों सहस्राब्दियों के इतिहास में इस प्रकार का अन्य कोई उदाहरण दृष्टिगोचर नहीं होता। इससे खारवेल के जैन धर्म के प्रति प्रगाढ़ प्रेम, अनुपम स्वधर्मीवात्सल्य, अद्भुत साहस और अप्रतिम वीरता, महानता प्रादि का स्पष्टतः परिचय प्राप्त होता है। यह बड़े प्राश्चर्य की बात है कि धार्मिक, राजनैतिक एवं ऐतिहासिक आदि सभी दृष्टियों से अत्यन्त महत्वपूर्ण खारवेल जैसे महान् राजा का भारतीय ग्रन्थराशि में और विशेषतः जैन साहित्य में कहीं नामोल्लेख तक नहीं है। कलिंग चक्रवर्ती खारवेल का यत्किचित परिचय हाथीगंफा के शिलालेख एवं 'हिमवन्त-स्थविरावली' नामक एक छोटी सी हस्तलिखित पुस्तिका से प्राप्त हुआ है । ___हाथिगुंफा वाला खारवेल का शिलालेख उड़िसा प्रदेशान्तर्गत भुवनेश्वर तीर्थ के निकटस्थ कुमारगिरि (खण्डगिरि अथवा उदयगिरी) की एक चौड़ी गुफा के ऊपर खुदा हुमा है। हिमवन्त स्थविरावली में कलिंगपति खारवेल के सम्बन्ध में जो उल्लेख हैं, उनसे हाथीगुंफा के शिलालेख में उपलब्ध कतिपय विवरणों की न केवल पुष्टि ही होती है अपितु शिलालेख में उटैंकित दो-तीन तथ्यों पर विशिष्ट प्रकाश पड़ता है। उदाहरण के रूप में उपरोक्त शिलालेख और हिमवन्त स्थविरावली में उल्लिखित निम्नलिखित तथ्य द्रष्टव्य हैं : (१) हाथीगुंफा के शिलालेख में खारवेल के वंश का परिचय देते हुए लिखा है: - "चेतराजवसवधनेन" - अर्थात् चेत वंश का वर्धन करने वाले ने । शिलालेख के इस वाक्य के माधार पर कतिपय विद्वान् कलिंगपति खारवेल को चेदि वंश का, तो कतिपय विद्वान् चैत्रवंश का मानते हैं । (२) हिम श स्थविरावली में खारवेल को चेटवंशीय बताते हुए लिखा है कि कूरिणक के साथ युद्ध में पराजित हो वैशाली गणराज्य के अधिपति महाराज चेटक के स्वर्गगमन के पश्चात् उनका शोभनराय नामक पुत्र अपने श्वसुर कलिंग - 'देखिशारत के हापीगुफा वाले शिलालेख की पंक्ति संख्या ८ मोर १२ । [सम्पादक] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy