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________________ चौथा निह्नव प्रश्वमित्र] दशपूर्वधर-काल : मार्य महागिरि-सुहस्ती ४६७ विपथगामी अश्वमित्र को प्रतिबोध देकर पुनः सही पथ पर लगा दिया। अश्वमित्र तत्काल अपने गुरु के पास पहुंचा और उनसे क्षमा मांग कर एवं अपने मिथ्यात्त्व के लिये प्रायश्चित्त ले कर पुनः श्रमणसंघ में सम्मिलित हो गया। विक्रियावादी पांचवा निहव-गंग (वीर-निर्वाण संवत् २२८) वीर नि० सं० २२८ में भगवान् महावीर के शासन का पांचवां निह्नव द्विक्रियावादी गंग नामक प्रणगार हुमा । निह्नव गंग अथवा गंगदेव प्राचार्य महागिरि के शिष्य धनगुप्त का शिष्य था। गंग प्रणगार एक दिन दुपहर की कड़ी धूप में उलूगातीर नामक नदी को पार कर रहा था। उक्त नदी को पार करते समय अणगार गंग को अपने पैरों से ठंड का और ऊपर से चिलचिलाती धूप की गर्मी का अनुभव हुमा । एक ही साथ ठंड और गर्मी का अनुभव होने के कारण उसके मन में विचार उत्पन्न हुया - "भगवान् महावीर ने तो फरमाया है कि एक समय में दो क्रियाएं नहीं होती, दो प्रकार का उपयोग नहीं होता। एक समय में एक ही क्रिया की जाती और एक ही प्रकार का उपयोग होता है। पर वह तो प्रत्यक्ष ही ठंड और गर्मी दोनों का अनुभव एक साथ, एक ही समय में कर रहा है । तो, इससे स्पष्टतः यह सिद्ध होता है कि एक ही समय में दो प्रकार की क्रियाएं और दो प्रकार का उपयोग हो सकता है। भगवान् महावीर का यह फरमाना कि एक समय में एक ही क्रिया और एक ही उपयोग होता है - वस्तुतः असत्य है।" अपने गुरु धनगुप्त के पास पहुंच कर गंग मणगार ने द्विक्रियावाद की नवीन. मान्यता रखी। प्रार्य धनगुप्त ने गंग के मन में उत्पन्न हुई शंका को मिटाने का प्रयास करते हुए कहा- "वत्स! तुम्हें इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिये कि एक क्षण के अन्दर प्रसंख्य समय होते हैं। तुम जिसे समय की संज्ञा दे रहे हो वह समय नहीं, क्षण है । समय तो क्षण का असंख्यातवां भाग है । समय वस्तुतः क्षण का वह असंख्यातवां सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग है, जिसका और कोई टुकड़ा या भाग नहीं किया जा सकता। एक क्षण में अनेक क्रियाओं का अनुभव हो सकता है, पर एक समय में कभी नहीं। तुम्हें नदी में जो गरमी और सर्दी का अनुभव हुमा, वह एक समय में नहीं हुमा । गर्मी का अनुभव होने के पश्चात् जो सर्दी का अनुभव हुआ, वह वस्तुतः असंख्यात समय पश्चात् हुमा । इन दोनों प्रकार के उपयोगों के बीच में असंख्यात समय का व्यवधान है, अन्तर है। समय वस्तुतः काल का वह सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग है जिसका और कोई दूसरा विभाग नहीं हो सकता, जबकि क्षण, काल का वह भाग है, जिसमें प्रसंख्यात समय समाविष्ट होते हैं । इस प्रकार असंख्यात समयों के पुंज 'क्षरण' नामक काल विभाग में जो तुम्हें दो प्रकार के अनुभव हुए, दो प्रकार के उपयोग हुए हैं, वे एक समय में हुए दो उपयोग नहीं, अपितु एक क्षण में हुए दो उपयोग हैं। जिस प्रकार, एक पुद्गल के उस छोटे से छोटे, सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग को परमाणु कहते हैं, जिसका कि और कोई विभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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