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________________ ४३० जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [चन्द्रगुप्त का परिचय ___ईसा की दूसरी शती में हुए विदेशी विद्वान् जस्टिन ने सिकन्दर के अधि-. कारियों द्वारा तथा मेगस्थनीज द्वारा लिखे गये संस्मरणों के आधार पर अपने "सारसंग्रह" में ये पंक्तियां लिखीं। इनसे हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचते हैं - सिकन्दर ने एक बड़ी सेना के साथ यूनान से लेकर भारत की पश्चिमोत्तर सीमा तक के देशों को विजित करने के पश्चात् ईसा पूर्व ५२७ में भारत पर प्राक्रमरण किया। अनेक बड़ी-बड़ी राज्यसत्ताओं को पददलित एवं पराजित कर देने के कारण सिकन्दर की सेना का मनोबल बढ़ा हुआ था। नवीनतम शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित सिकन्दर की शक्तिशाली विशाल सेना के समक्ष भारत के पश्चिमोत्तर सीमावर्ती छोटे-छोटे राज्यों तथा गणराज्यों की सेनाएं कड़े संघर्ष के पश्चात् एक के बाद एक पराजित होती ही गई। इस दयनीय स्थिति को देखकर देश के प्रावाल वृद्ध के अन्तर्मन में उत्पन्न हुए क्षोभ ने प्रत्येक भारतवासी को अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये कुछ न कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दी। प्रबृद्ध बुद्धिजीवियों ने विदेशी शक्ति से लोहा लेने के लिये जनमानस को उभारा। नवयुवक अपने देश की स्वतन्त्रता के लिये प्राणाहुति देने को तत्पर हुए। चाणक्य जैसे कूटनीतिज्ञ और रणनीति विशारदों की निगाह तक्षशिला में "उच्च सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले शिक्षार्थियों की ओर गईं और उनमें से सुयोग्य युवकों का चयन कर उनके द्वारा युवावर्ग को आवश्यक सैनिक प्रशिक्षण दिलवाया तथा इस प्रकार तक्षशिला की सैनिक एकेडमी से शिक्षा प्राप्त स्नातकों के सेनापतित्व में तत्काल खड़ी की गई सैनिक टुकड़ियों में से कुछ को विदेशी शासन की समाप्ति के लिये युद्ध के मैदानों में भेजकर तथा कुछ को गुरिल्ला युद्ध से शत्रु की शक्ति क्षीण करने का कार्य सौंप कर सामूहिक विद्रोह का झण्डा फहराया गया। चन्द्रगुप्त जैसा महत्वाकांक्षी युवक, जो उस समय तक तक्षशिला में पर्याप्त सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका था, देश पर आई हुई संकट की घड़ियों में चुपचाप नहीं बैठ सकता था। अतः चन्द्रगुप्त ने भी एक सैनिक टुकड़ी का सेनापतित्व करते हुए सिकन्दर की सेना के सम्मुख डटकर लोहा लिया। एक विदेशी लेखक, तूफान की तरह निरन्तर आगे बढ़ती हुई अपने देश की बहादुर सेना की राह में डटकर उसकी प्रगति को रोकने वाले भारतीय सेनापति के लिये यह लिखे कि - चन्द्रगुप्त ने डाकुओं का दल एकत्रित करके भारतवासियों को भड़काया- तो इसके लिये उसे दोष नहीं दिया जा सकता। संसार का इतिहास साक्षी है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये प्रारणाहुति देने वाले ररपबांकुरे देशभक्तों को माततायी सदा से ही चोर, डाकू, · लुटेरे, गुण्डे मादि सम्बोधनों से सम्बोधित करते माये हैं। अपने समय के अप्रतिम कूटनीतिज्ञ और राजनीति-विशारद चाणक्य के दूरदर्शितापूर्ण निर्देशन में साहसी नवयुवक चन्द्रगुप्त ने अपनी मातृभूमि भारत को विदेशी यूनानियों की दासता से उन्मुक्त कराने का बीड़ा उठाया और अद्भुत धर्य, साहस एवं पराक्रम से उसने यूनानियों को भारतवर्ष की सीमाओं से बाहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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