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________________ ४२३ दशपूर्वधर-काल : मार्य स्थूलभद्र मौर्य राजवंश का संस्थापक चाणक्य प्राचार्य हेमचन्द्र ने परिशिष्ट पर्व में चाणक्य के जीवन का परिचय देते हुए लिखा है कि गोल्ल-प्रदेश के चरणक नामक ग्राम में चरणी नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम चरणकेश्वरी था। यह ब्राह्मण दम्पति जैनधर्म का अनन्य अनुयायी था और श्रावक व्रत का पालन करते हुए श्रमरणों की सेवा किया करता था। विभिन्न क्षेत्रों में विचरण करते हुए जैन-श्रमण, ब्राह्मण चणी के गृह में प्रायः ठहरा करते थे। ब्राह्मणी चणकेश्वरी ने कालान्तर में एक पुत्र को जन्म दिया। उस शिशु के जन्म के समय चरणी ब्राह्मण के घर के एक एकान्त कक्ष में कुछ स्थविर श्रमण ठहरे हुए थे। चरणी ने अपने नवजात पुत्र को उन स्थविरों के समक्ष लाकर दिखाया और कहा - "भगवन् ! आज जो मेरे यहां पुत्र का जन्म हुआ है, इसके जन्म से ही मुंह में दांत हैं। वस्तुतः यह अहष्टपूर्व घटना है, आज तक दांतों सहित बालक का जन्म न कहीं देखा गया है और न सुना ही।" नवजात शिशु के मुंह में दातो को देख कर स्थविर श्रमण न कहा"सुश्रावक ! तुम्हारा यह पुत्र एक महान् प्रतापी राजा होगा।" "मेरा पुत्र राज्यसत्ता का स्वामी होकर कहीं नरक का अधिकारी न बन जाय", यह विचार कर चरणी ने शिशु को घर ले जाकर रेती से उसके दांत घिसना प्रारम्भ कर दिया। नवजात शिशु दन्तपर्षण की पीड़ा से रोया-चिल्लाया और छटपटाया पर चरणी ने कठोर हृदय कर के उसके दांतों को घिस डाला। जब चणी ने अपने पुत्र के दांतों को घिस दिये जाने की बात मुनियों से कही तो स्थविर मुनि ने कहा कि दांतों के घिस दिये जाने पर अब वह बालक कालान्तर में सम्राट नहीं पर सम्राट तुल्य (अन्य व्यक्ति को राजा बना कर उसके माध्यम से राज्यसत्ता का संचालन करने वाला) होगा। ब्राह्मण चरणी ने यह विचार कर कि 'यदभावी न च तद्भावी, भावी चेन तदन्यथा' दांतों को और अधिक नहीं घिसा.पौर अपने उस पुत्र का नाम चारणक्य रखा तथा यथासमय उसकी शिक्षा का प्रबन्ध किया। बड़ी लगन के साथ अध्ययन करते हुए कुशाग्रबुद्धि चाणक्य ने अनेक प्रकार की विद्यानों में निष्णातता प्राप्त की। विद्वान् चाणक्य संतोष को ही सबसे बड़ा धन समझ कर श्रक के व्रतों का सम्यक्पे ण पालन करता था। ___जब चाणक्य युवा हुअा तो एक कुलीन ब्राह्मणकन्या के साथ उसका पाणिग्रहण सम्पन्न हुमा । अपने माता-पिता के देहावसान पर चाणक्य ने अपनी छोटी सी गृहर थी का कार्यभार सम्हाला पर स्वल्पसंतोषी होने के कारण पनसंग्रह की मोर उसने कभी ध्यान नहीं दिया। अपने सहोदर के विवाह के अवसर पर एक दिन चाणक्य की पत्नी अपने मातृग्रह गई। उसकी बहिनें पहले ही वहाँ पहुंच चुकी थीं । चाणक्य की सभी सालियों का विवाह महासम्पत्तिशाली सम्पन्न घरों में हुमा था अतः वे सभी बहुमूल्य वस्त्राभूषणों से अलंकृत, षोडश श्रृंगारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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