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________________ ४२२ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भा० पर सि० द्वारा प्रा० रोचक और प्रेरणाप्रदायिनी हैं । केवल पुरुषों ने ही नहीं यहां की वीरांगनाओं. ने भी युद्ध के मैदानों में रणचण्डी के रूप में डट कर यूनानियों के आक्रमण से मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राणाहूतियां दीं। ३६ ई० पूर्व तक जीवित यूनानी लेखक डियोडोरस ने लिखा है : ___ "प्रश्वकायनों ने अपनी वीरांगना रानी क्लियोफिस (संभवतः कृपा देवी) के नेतृत्व में अन्त तक अपने देश की रक्षा करने का दृढ़ निश्चय किया। रानी के साथ ही वहां की स्त्रियों ने भी प्रतिरक्षा में भाग लिया। वेतनभोगी सैनिक प्रारम्भ में बड़े निरुत्साहित हो कर लड़े परन्तु बाद में उन्हें भी जोश आ गया और उन्होंने अपमान के जीवन की अपेक्षा गौरव के साथ मर जाना ही श्रेष्ठ समझा।"" ३२७ ई० पूर्व सिकन्दर द्वारा भारत पर किये गये आक्रमण के दौरान, ई० पूर्व ३२३ में सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात्, ३०४ ई० पूर्व में यूनानी शासक सेल्यूकस द्वारा पुनः भारत पर किये गये आक्रमण के समय तथा ३२७ ई० पूर्व से ३०४ ई० पूर्व तक विदेशी आक्रमणों को विफल करने तथा भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने में चन्द्रगुप्त मौर्य ने क्या-क्या महत्वपूर्ण भूमिकाएं अदा की इस सन्दर्भ में संक्षेपतः उसका जीवनवृत्त यहां दिया जा रहा है । मौर्य राजवंश का अभ्युदय वीर निर्वाण संवत् २१५ और तदनुसार ईसा पूर्व ३१२ में नन्द राज्यवंश की समाप्ति के साथ भारत में मौर्य-वंश के नाम से एक शक्तिशाली राज्यवंश का अभ्युदय हुप्रा । इस राज्यवंश ने अपनी मातृभूमि आर्यधरा पर से यूनानियों के शासन का नामोनिशान मिटा न केवल सम्पूर्ण भारत पर ही अपितु भारत के बाहर के अनेक प्रान्तों पर भी अपनी विजयवैजयन्ती फहरा कर एक सशक्त और विशाल राजसत्ता के रूप में १०८ वर्ष तक शासन किया। इस राजवंश के शासनकाल में भारतवर्ष में चहुंमुखी प्रगति हुई। इस राज्यवंश के संस्थापक मौर्य-सम्राट चन्द्रगुप्त के जीवन के साथ उस समय के महान् राजनीतिज्ञ चाणक्य का संपृक्त सम्बन्ध है, जिसे वस्तुतः इस शक्तिशाली राज्यवंश का संस्थापक एवं अभिभावक कहा जा सकता है। विद्वान् ब्राह्मण चाणक्य के बुद्धिकौशल के बल पर ही इस महान् राज्यवंश की स्थापना हुई प्रतः इस राज्यवंश का परिचय देने से पूर्व महान् राजनैतिक, उच्चकोटि के अर्थशास्त्री एवं अद्वितीय कूटनीतिश चाणक्य का परिचय देना परमावश्यक है। चाणक्य और चन्द्रगुप्त-दोनों का जीवन एक दूसरे से पूर्णतः सम्बद्ध है अतः उन दोनों का संक्षिप्त परिचय यहां साथ-साथ दिया जा रहा है । 'मककिडिल-कृत 'इन्वेजन माफ इन्डिया बाई अलेक्जेंडर', पृ० २७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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