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________________ ३५. जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [मा० रन के अनुसार (४) चौथा स्वप्न, जिसमें तुमने बारह फरणों वाला सर्प देखा, उसका फल यह है कि निरन्तर बारह वर्ष पर्यन्त अत्यन्त भीषण दुष्काल पड़ेगा। (५) पांचवें स्वप्न में उल्टे लौटते हुए देवविमान के दर्शन का यह फल है कि पंचम काल में देवता, विद्याधर, तथा चारण मुनि भरतक्षेत्र में नहीं प्रावेंगे। (६) छठे स्वप्न में तुमने जो अशुचि स्थान में उगे हुए कमल को देखा है, उसका फल यह है कि भविष्य में क्षत्रियादि उत्तम कुलोत्पन्न पुरुपों के स्थान पर हीन जाति के लोंग जैन धर्म के अनुयायी होंगे। (७) सातवें स्वप्न में भूतों का नृत्य देखने का फल यह है कि अब भविष्य में मनुष्यों की प्रधोजाति के देवों के प्रति अधिक श्रद्धा होगी। (८) खद्योत का उद्योत जिसमें देखा गया, उस पाठवें स्वप्न का फल यह है कि जैनागमों का उपदेश करने वाले मनुष्य भी मिथ्यात्त्व से ग्रस्त होंगे और जैन धर्म कहीं-कहीं रहेगा। (6) बीच में सुखा हमा पर छिछले जल से युक्त किनारों वाला सरोवर जो तुमने हवें स्वप्न में देखा है, उसका फल यह होने वाला है कि जिन पवित्र स्थानों पर तीर्थंकरों के पंचकल्याणक हुए हैं, उन स्थानों में जैन धर्म विनष्ट होगा पौर दक्षिणादि देशों में कहीं-कहीं थोड़ा-बहुत धर्म रहेगा। (१०) दशवें स्वप्न में तुमने कुत्ते को स्वर्ण की थाली में खीर खाते देखा, वह इस भावी का द्योतक है कि लक्ष्मी का उपभोग प्रायः नीच पुरुष ही करेंगे । लक्ष्मी कुलीनों को दुष्प्राप्य होगी। (११) ग्यारहवें स्वप्न में तुमने बन्दर को हाथी पर बैठे देखा, उसका फल यह है कि क्षत्रिय लोग राज्यरहित होंगे और नीच कुल के अनार्य लोग राज्य करेंगे। (१२) बारहवें स्वप्न में तुमने समुद्र को वेलामों (तटों) का उल्लंघन करते देखा है, इसका फल यह है कि राजा लोग न्यायमार्ग का उल्लंघन करने वाले और प्रजा की समस्त लक्ष्मी को लूटने वाले होंगे। (१३) तेरहवें स्वप्न में तुमने बछड़ों द्वारा वहन किया जा रहा अति भारयुक्त रथ देखा, उसका फल यह है कि प्रब भविष्य में बहुधा लोग युवावस्था (बाल अवस्था) में ही संयम ग्रहण करेंगे और वृद्धावस्था में शक्ति क्षीण हो जाने के कारण संयम धारण नहीं कर सकेंगे। (१४) चौदहवें स्वप्न में तुमने राजकुमार को ऊंट पर चढ़े देखा, उसका फल यह है कि अब भविष्य में राजा लोग निर्मल सत्य धर्म का परित्याग कर हिंसा-मार्ग स्वीकार करेंगे। (१५) पन्द्रहवें स्वप्न में तुमने धूलि से आच्छादित रत्नराशि के दर्शन किये, उसका यह फल होने वाला है कि भविष्य में निर्ग्रन्थ मुनि भी परस्पर एकदूसरे की निन्दा करने लगेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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