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श्रुतकेवली-काल : प्राचार्य यशोभद्रस्वामी
३२३. आप ही की विचक्षण प्रतिभा का फल था कि एक ही प्राचार्य के शासनकाल में संभूतविजय और भद्रबाहु जैसे दो समर्थ शिष्य चतुर्दश पूर्वधर-श्रुतकेवली बने।
प्राचार्य यशोभद्रस्वामी २२ वर्ष गृहस्थ पर्याय में रहे, १४ वर्ष सामान्य साधु-पर्याय में और ५० वर्ष तक युगप्रधान-प्राचार्यरूप से जिन शासन की सेवा में निरत रह ८६ वर्ष की कुल आयु पूर्ण कर वी० नि० सं० १४८ में स्वर्गवासी हुए ।
भगवान् महावीर के पश्चात् सुधर्मा स्वामी से प्राचार्य यशोभद्र तक जैन श्रमसंघ में एक ही प्राचार्य की परम्परा बनी रही। वाचनाचार्य आदि रूप से संघ में रहने वाले अन्य प्राचार्य भी एक ही शासन की व्यवस्था निभाते रहे। प्राचार्य यशोभद्र ने अपने शासनकाल तक इस परम्परा को सम्यकपेरण सुरक्षित रखा, यह अापकी खास विशेषता है।
गुरुपद्रावली में प्राचार्य यशोभद्र का जीवनकाल इस प्रकार बताया गया है :
"तत्पट्टे ५ श्री यशोभद्र स्वामी । स च २२ वर्षारिण गृहे, १४ वर्षाणि व्रते, ५० वर्षाणि युगप्रधानत्वे, सर्वायुः षडषिति (८६) वर्षारिण प्रपाल्य श्री वीरात् १४८ वर्षान्ते स्वर्ययो।"
पट्टावली समुच्चय, पृ० १६४
दिगम्बर ". दिगम्बर मान्यता के ग्रन्थों एवं पट्टावलियों में तीसरे श्रुतकेवली प्राचार्य यशोभद्र के स्थान पर अपराजित को तीसरा श्रुत-केवली प्राचार्य माना गया है। आपका भी कोई विशेष परिचय उपलब्ध नहीं होता।
६. श्री सम्भूतविजय प्राचार्य यशोभद्र स्वामी के पश्चात् भगवान् महावीर के छठे पट्टधर प्राचार्य श्री सम्भूतविजय और भद्रबाहु स्वामी हुए।
आचार्य सम्भूतविजय का विशेष परिचय कहीं उपलब्ध नहीं होता। इनके सम्बन्ध में केवल इतना ही ज्ञात है कि वे माढर गोत्रीय ब्राह्मण थे । तपागच्छ पद्रावली में इनके नाम की व्युत्पति बताते हुए लिखा गया है - "पदसमुदायोपचारात् संभूतेति श्री संभूतविजयः भद्दत्ति।"
प्राचार्य संभूतविजय का जन्म वीर नि० सं० ६६ में हुमा । ४२ वर्ष तक गृहवास में रहने के पश्चात् आचार्य यशोभद्र के उपदेश से प्रापने वीर नि० सं० १०८ में श्रमरण दीक्षा अंगीकार की। आपने विशुद्ध श्रमणाचार का पालन करते हुए प्राचार्य यशोभद्र के पास द्वादशांगी का समीचीन रूप से अध्ययन कर श्रतकेवली पद प्राप्त किया । ४० वर्ष तक आपने सामान्य साधु पर्याय में रहते हुए जिनशासन की सेवा की और वीर निर्वाण संवत् १४८ से १५६ तक प्राचार्य पद पर
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