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________________ गोपयुवक का दृष्टांत ] श्रुतवली - काल : प्राचार्य प्रभवस्वामी ३०५ पूर्ति में ।" तत्पश्चात् जम्बूकुमार ने अर्थ के अनुचित उपयोग के सम्बन्ध में एक गोपयुवक का दृष्टांत सुनाया जो इस प्रकार है : गोपयुवक का दृष्टांत "अंग जनपद के एक गोकुल में अनेक समृद्ध गोपालक रहते थे, जिनके पास गणित गायें तथा भैंसें थीं। एक बार डाकुओंों के एक सशक्त एवं सशस्त्र दल ने उस गोकुल पर आक्रमण किया। डाकू लूट में मिले धन के साथ साथ एक अत्यन्त सुन्दरी गोपयुवती को भी अपने साथ ले गये जो एक पुत्र की मां थी । जाते समय डाकू उस युवती के पुत्र को गोकुल में ही छोड़ गये प्रौर उस गोपवधू को डाकू बेचने के लिये चम्पा नगरी में ले गये, जहां एक वेश्या ने उसे खरीद लिया । वेश्या ने उस गोपवधू को नृत्य एवं संगीत कला तथा गरिएकाकर्म की उच्चकोटि की शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध किया । कुछ ही वर्षों के प्रयास से वह गोपयुवति संगीत और नृत्य कला में निष्णांत एवं निपुण गणिका बन गई । वृद्धा गणिका ने गरिणका कार्य में निपुण उस गोपवधू के साथ एक रात्रि सहवास करने का एक लाख रुपया मूल्य रखा । उधर गोकुल में रहे उस गोपवधू के पुत्र ने भी युवावस्था में प्रवेश किया । वह गोपयुवक घृतपात्रों से भरे अनेक गाडे लेकर बेचने के लिये एक दिन चम्पा नगरी में पहुंचा । घृत विक्रय के पश्चात् उसने देखा कि अनेक युवक गणिकाओं के घरों में नृत्य संगीत का श्रानन्द लूटते हुए यथेप्सित क्रीड़ाएं कर रहे हैं। उसके मन में भी विचार उठा कि यदि सुन्दर से सुन्दर गरिणका के साथ क्रीड़ा का आनन्द वह न ले सका तो फिर उसका सारा धन किस काम प्रायगा । यह विचार कर वह युवक अनेक गणिकाओं के सौन्दर्य को देखता हुआ गणिका बनी हुई उस गोपवधु के यहां जा पहुंचा। वह उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो, उसे मुंह-मांगा शुल्क देर रात्रि के समय आने का कह कर अपने गाडों के पास चला प्राया । संध्या के समय वह गोपयुवक स्नानादि से निवृत्त हो सुन्दर वस्त्राभूषरण पहन कर उस गरिएका के घर की ओर चल पड़ा। एक देवी ने अनुकम्पावश उस युवक को उस घोर अनाचार से बचाने के लिये सवत्सा गो का रूप धारण किया और मार्ग के बीचों-बीच बैठ गई। मार्ग में उस युवक का एक पैर मार्ग में पड़े मानव के मल से लिप्त हो गया । उस व्यक्ति ने मैले से भरा अपना पैर उस गाय के बछड़े की पीठ पर पोंछ डाला मनुष्य की भाषा में बोलते हुए उस बछड़े ने अपनी माता से पूछा - "मां ! यह ऐसा कौन पुरुष है, जो विष्टा से भरा अपना पैर मेरे शरीर पर पोंछ रहा है ?" । गौ ने भी मानव को वोली में उत्तर दिया- " वत्स ! इस निकृष्ट नराधम पर क्रोध मत करना, यह ग्रभागा तो अपनी माता के साथ सम्भोग करने जा रहा है । इस प्रकार का दुष्कृत्य करने वाला मानव यदि तेरे शरीर पर अपना विष्टालिप्त पांव पोछे, तो यह कोई ग्राश्चर्य की बात नहीं है ।" For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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