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________________ वस्तुत: नन्द कौन था ?] केवलिकाल : प्रार्य जम्बू - २७६. नैमित्तिक भद्रबाह और अंतिम श्रतकेवली धतूर्दश पूर्वधर प्राचार्य भद्रबाह को एक ही भद्रबाहु मानने की भूल पिछली अनेक सदियों से आज तक चली आ रही है । ठीक उसी प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि वत्सपति उदयन का अपुत्रावस्था में मृत्यु हुई और कालान्तर में उदायी और उदयन नामों में यत्किचित् समानता होने के कारण उदायो के लिये यह मान्यता लोगों के मन में घर कर गई कि उसकी मृत्यु संततिविहीन दशा में हुई । इसके परिणामस्वरूप शूद्र स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुए महापद्मनन्द को घटना को उदायी के उत्तराधिकारी नन्दिवर्द्धन के साथ जोड़कर उसे ही प्रथम नन्द माना जाने लगा। __इन सब तथ्यों पर विचार करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि उदायी का उत्तराधिकारी उदायी के पश्चात् मगध के राज्य सिंहासन पर आसीन होने वाला नन्दिवर्द्धन शिशुनागवंशीय ही था न कि नापितपुत्र अथवा वेश्यापुत्र । नन्दिवर्द्धन के विशुद्ध शिशुनागवंशीय होने का एक प्रबल प्रमाण यह है कि वत्सपति उदयन की पुत्री का विवाह नन्दिवर्द्धन के साथ सम्पन्न हया था। प्रवन्ती का प्रद्योत राजवंश जैसा कि पहले बताया जा चुका है, वीर निर्वाण संवत् के प्रारम्भ होते ही प्रथम दिन में उज्जयिनी के अधीश्वर चण्डप्रद्योत के पुत्र पालक का अवन्ती (मालव) राज्य के राजसिंहासन पर राज्याभिषेक हप्रा। उस समय महत्वाकांक्षी मगधपति कूणिक अपने राज्यविस्तार में जुटा हुअा था। कूणिक द्वारा वैशाली के शक्तिशाली गणतन्त्र को भूलुण्ठित कर देने के पश्चात् मगव की गणना एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में की जाने लगी थी । मगधपति के प्रचण्ड प्रताप के कारण चण्डप्रद्योत के शासनकाल में अजित अवन्ती राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा भी शनैः शनैः क्षीण होने लगी थी। पालक के राज्यारोहरण के कुछ ही समय पश्चात् उसके छोटे भाई गोपाल ने प्रार्य सुधर्मा के उपदेश से विरक्त हो उनके पास श्रमरण दीक्षा ग्रहण कर ली थी। पालक के दो पुत्र थे, बड़ा अवन्तीवर्धन और छोटा राष्ट्रवर्धन । पालक ने उज्जयिनी में रहते हुए अवन्ती राज्य पर २० वर्ष तक शासन किया। पालक के शासनकाल में प्रवन्ती राज्य में कोई विशेष रूप से उल्लेखनीय घटना घटित हुई हो, ऐसा कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता। वीर निर्वाण सं० २० में प्रार्य सुधर्मास्वामी के निर्वाणगमन से कुछ समय पूर्व पालक ने अपने बड़े पुत्र प्रवन्तीवर्धन को उज्जयिनी का राज्य और छोटे पुत्र राष्ट्रवर्धन को युवराज पद देकर आर्य सुधर्मा स्वामी के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। प्रद्योत राजवंश की इन तीन पीढ़ियों के घटनाक्रम का एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक महत्व है । वह यह है कि जिस दिन भण्डप्रद्योत का जन्म हुमा उस ही दिन बौद्धधर्म के प्रवर्तक भ० बुद्ध का जन्म हुमा था। जिस दिन बुद्ध को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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