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________________ जन्म, नि० काल निर्णय ] केवलिकाल : ग्रार्य जम्बू ( १ ) श्वेताम्बर परम्परा की प्रायः सभी पट्टावलियों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जम्बूकुमार की दीक्षा वीर निर्वाण संवत् १ में हुई । (२) दिगम्बर परम्परा के प्राचार्य गुणभद्र द्वारा रचित महापुराण के द्वितीय विभाग उत्तरपुराण में श्रेणिक के प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर के प्रथम गंगाधर इन्द्रभूति गौतम ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अर्हदास और जिनदासी का पुत्र जम्बूकुमार बड़ा ही भाग्यशाली और कान्तिमान होगा । अनाधृत देव उसकी पूजा करेगा । वह अत्यन्त प्रसिद्ध तथा विनीत होगा। वह यौवन के प्रारम्भ से ही विकार से रहित होगा । जिस समयं भगवान् महावीर स्वामी पावापुर में मोक्ष प्राप्त करेंगे उसी समय मुझे भी केवलज्ञान होगा । तदनन्तर सुधर्माचार्य गणधर के साथ अनेक क्षेत्रों में विचरण करता हुआ मैं पुनः इस नगर के विपुलाचल पर्वत पर आऊँगा । मेरे प्राने का समाचार सुन कर इस नगर का राजा चेलिनी का पुत्र कूणिक अपने परिवार सहित वन्दन तथा उपदेशश्रवणार्थं आवेगा । उसी समय जम्बूकुमार भी संसार से विरक्त हो दीक्षा ग्रहण करने के लिये समुत्सुक होगा। माता-पिता कुटुम्बीजनों के आग्रह को स्वीकार कर वह ४ कन्याओं के साथ विवाह करेगा । जम्बूकुमार द्वारा प्रतिबोध पाकर उसकी चारों पत्नियां, उनके तथा जम्बू के माता-पिता और उसके घर में चोरी करने हेतु प्राया हुआ अपने पांच सौ साथियों सहित विद्य ुच्चोर भी संसार से विरक्त हो दीक्षित होने का दृढ़ संकल्प करेगा । जम्बूकुमार को दीक्षा लेने के लिये उत्सुक देखकर उसके सब परिजन, अपनी अठारह प्रकार की सेनाओं के साथ कूरिणक और अनाधृत देव जम्बू के पास श्राकर उसका मांगलिक दीक्षा महोत्सव करेंगे । वे सब लोग विपुल वैभव के साथ विपुलाचल पर हमारे पास प्रावेंगे और जम्बू ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन तीनों वर्णों के अनेक लोगों, विद्युच्चोर प्रौर उसके ५०० साथियों के साथ सुधर्माचार्य के पास दीक्षा ग्रहण करेगा । " १ इम्यात्कृती सुतो भावी, जिनदास्यां महाब ति: । जम्ब्वाख्योऽनाघृताद्देवादाप्तपूजोऽतिविश्रुतः ||३७|| विनीतो यौवनारम्भेऽप्यनाविष्कृतविक्रियः । वीरः पावापुरे तस्मिन् काले प्राप्स्यति निर्वृतिम् ॥३८॥ तत्रैवाहमपि प्राप्य बोधं केवल संज्ञकम् । सुधर्माख्यगणेशेन सार्धं संसारवह्निना ||३६|| करिष्यन्नतितप्तानां ह्लादं धर्मामृताम्बुना । इदमेव पुरं भूयः संप्राप्यात्रंव भूघरे ||४०|| स्थास्याम्येतत्समाकर्ण्य कुरिणकश्चेलिनीसुतः । तत्पुराधिपतिः सर्वपरिवारपरिष्कृतः ||४१|| प्रागस्याभ्यच्यं वन्दित्वा श्रुत्वा धर्म ग्रहीष्यति । [ उत्तरपुराणः पर्व ७६ ] For Private & Personal Use Only २२७ Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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