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________________ १८८ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग आर्य जम्बू के पूर्वमव : .आर्य जम्बू ने ऐसी अद्भुत आत्मशक्ति, इतनी अपरिमित धन-सम्पत्ति एवं सर्वप्रिय-सम्मोहक भव्य व्यक्तित्व किस प्रकार प्राप्त किया, यह उनके पूर्वभव के वृत्तान्त से भलीभांति जाना जा सकता है अतः यहां उनके पूर्वभवों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। भगवान् महावीर, निर्वाणगमन से १६ वर्ष पूर्व, एक समय राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में पधारे हुए थे। भगवान् की दिव्य देशना सुनने हेतु अपार जनसमूह प्रभु के समवसरण की ओर उमड़ पड़ा। मगध-सम्राट् श्रेणिक भी अपने परिजन-पुरजन आदि के साथ तीर्थंकर महावीर के दर्शन-वन्दन एवं उपदेश-श्रवण की उत्कण्ठा लिए प्रभु-सेवा में उपस्थित हुए। दर्शनार्थ जाते समय श्रेणिक ने मार्ग में प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को चिलचिलाती धूप में ध्यानमग्न देखा। उनके उग्र तप से प्रभावित श्रेणिक त्रिभुवनतिलक भगवान् महावीर से महर्षि प्रसन्नचन्द्र के घोर तप के फलस्वरूप होने वाली उनकी भावी गति के सम्बन्ध में ऊहापोहात्मक अनेक प्रश्न कर रहे थे। भगवान महावीर श्रेणिक के प्रश्नों के उत्तर में राजर्षि प्रसन्नचन्द्र द्वारा अपने तीव्र अशुभ एवं शुभ अध्यवसायों के कारण किए जा रहे नारक एवं देवायु के उपार्जन तथा क्षय के सम्बन्ध में फरमा रहे थे। उसी समय श्रेणिक ने देवदुन्दुभि-श्रवण एवं देवों के सम्पात को देखकर साश्चर्य प्रभु से उसका कारण पूछा। प्रभु ने फरमाया- "राजर्षि प्रसन्नचन्द्र को केवलज्ञानोपलब्धि हो गई है।" देवों ने पंच-दिव्य वर्षा कर केवली प्रसन्नचन्द्र का केवल-ज्ञानोत्सव मनाया और उसके पश्चात् वे दर्शन हेतु प्रभु के समवसरण में आये। उन देवों ने प्रभु के पादपद्मों में प्रणाम किया। उसी समय विद्युन्माली नामक एक महासमृद्धिशाली देव ने समवसरण में उपस्थित हो प्रभु को वन्दन करते हुए सूर्य एवं चन्द्रमा के समान जगमगाती हुई मणियों से जटित मुकुट से सुशोभित अपना मस्तक प्रभु के पदारविन्द में झुकाया। विद्यन्माली का सौन्दर्य और शरीर की कान्ति अन्य सब देवों से इतनी अधिक तेजस्वी सौम्य, नयनाभिराम और मनोहारो थी कि परिषद् में उपस्थित अधिकांश लोग विस्फारित नेत्रों से उसकी ओर एक-टक देखते ही रह गये। महाराज श्रेणिक ने प्रभु को सांजलि शीश झकाते हए प्रश्न किया"विश्वकनाथ ! सब देवों में अत्यधिक तेजस्वी यह कौनसा देव है ? इसने किस महान सुकृत के प्रताप से ऐसा अद्भुत कान्तिमान एवं मनमोहक सौन्दर्य प्राप्त किया है ? भगवान महावीर ने मगधसम्राट के प्रश्न का उत्तर देते हए फरमाया"राजन् ! इसी मगध जनपद में सुग्राम नामक ग्राम में प्रार्जव नामक एक राष्ट्रकूट अथवा राठोड़ (रट्ठउड़ो) रहता था।' उसकी पत्नी रेवती की कुक्षि ' तत्थासि तत्थवाणी प्रज्जवं प्रज्जवति रट्ठउडो।॥२॥ [उपदेशमाला, दोघट्टी वृत्ति] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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