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________________ आर्य जम्बू . (भगवान महावीर के द्वितीय पहषर) भगवान् महावीर स्वामी के प्रथम पट्टधर आर्य सुधर्मा के निर्वाण पश्चात् उनके प्रमुख शिष्य आर्य जम्बू ईसा से ५०७ वर्ष पूर्व, वीर निर्वाण संवत् २० में धर्म-संघ के द्वितीय आचार्य बने । ___ भगवान् महावीर के शासन में आर्य जम्बू एक महान् समर्थ प्राचार्य हुए हैं। जिस प्रकार उनके अनुपम त्याग की महत्ता प्रकट करने के लिए संसार में कोई उपमा उपलब्ध नहीं होती, ठीक उसी प्रकार उनकी शरीर-सम्पदा, वैराग्य, तप, गुरुभक्ति, सरलता और आध्यात्मिक ज्ञान आदि का चित्रण करने के लिए अथक परिश्रम से भी कोई उपयुक्त शब्दावली प्राप्त नहीं होती। __ अत्यन्त सुकुमार, स्वस्थ, सुन्दर, सुडौल और सशक्त, स्वर्ण के समान कान्तिमान सुमनसर-सुरोपम शरीर, मादक यौवन में प्रथम पाद-निक्षेप, समस्त विद्यानों एवं ७२ कलाओं में निपुणता, कुबेरोपम अक्षय-अतुल धन-वैभव, सुरसुन्दरियों के समान रूप-लावण्यसम्पन्न आठ कोकिलकण्ठिनी नववधुएं, विपुल विलासोपकरण, सुन्दर-सुखद वातावरण, सुख के समस्त साधन - ये सब कुछ सहजप्राप्त ऐहिक प्रलोभन जिस मुक्तिपथ के पथिक को किंचित्मात्र भी लुब्ध न कर सके, उस महान् साधक की विराटता का वास्तविक वर्णन लेखनी अथवा शब्दों से किया जाना एक प्रकार से असम्भव है। उद्दाम यौवन में अपने समक्ष भोगार्थ प्रस्तुत असीम भोग सामग्री को ठकरा कर जम्बू कुमार का स्वेच्छा से कण्टकाकीर्ण त्याग-पथ पर आरूढ़ होना, यह अपने आप में एक ऐसा असाधारण आश्चर्यजनक उदाहरण है जो सम्भवतः संसार के इतिहास में खोजने पर भी अन्यत्र नहीं मिलेगा। प्रत्येक मुमुक्षु साधक के लिए प्रकाशस्तम्भ की तरह पथ-प्रदर्शक जम्बूकुमार का उत्कट विरक्तिपूर्ण, आध्यात्मिक साधना की अमिट लौ यूक्त अखण्ड ज्योति से जगमगाता हुअा परम उद्दीप्त,परम उद्दात्त साहसी जीवन एक लम्ब काल से कवियों, कलाकारों, एवं लेखकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है और उनके द्वारा समय-समय पर जम्बूकुमार के जीवन के सम्बन्ध में प्रचुर मात्रा में अनेक भाषाओं एवं विविध विधाओं में साहित्य का सृजन किया जाता रहा है। आर्य जम्बू वर्तमान अवसर्पिणी काल में भरतक्षेत्र के अन्तिम केवली एवं अन्तिम मुक्तिगामी माने गए हैं। श्रद्धालु कवि ने निम्नलिखित सुन्दर शब्दों में एतद्विषयक अपनी भावाभिव्यंजना की है : लोकोत्तरं हि सौभाग्यं, जम्बूस्वामि महामुनेः । अद्यापि यं पतिं प्राप्य, शिवश्रीन्यिमिच्छति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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