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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - द्वितीय भाग १०. पण्हावागरण दशवां अंग प्रश्नव्याकररण (पण्हावागररण) है, इसका द्वादशांगी के क्रम में दशवां स्थान है । समवायांग, नन्दीसूत्र और स्थानांग तथा दिगम्बर परम्परा के अंगपत्ति आदि ग्रन्थों में प्रश्नव्याकरण सूत्र का जिस प्रकार का परिचय दिया गया है उससे वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण का मेल नहीं बैठता, यह एक विचारणीय विषय है । समवायांग सूत्र में प्रश्नव्याकररण का परिचय निम्नलिखित रूप में दिया गया है : : १५ " प्रश्नव्याकरण सूत्र में १०८ प्रश्न, १०८ प्रश्न और १०८ प्रश्नाप्रश्न', विद्यातिशय, नागकुमार, सुपर्णकुमार अथवा यक्षादि के साथ साधकों के जो दिव्य संवाद हुआ करते हैं - उन सब विषयों का निरूपण किया गया है । स्वकीय तथा परकीय सिद्धान्त के प्रज्ञापक प्रत्येक बुद्धों ने विविध अर्थ वाली भाषाम्रों द्वारा जिन प्रश्नों का प्रतिपादन किया, विशिष्ट· लब्धिसम्पन्न, उपशान्तकषाय, अनेक गुणों और योग्यतात्रों से सम्पन्न महान् प्राचार्यों ने जिन प्रश्नों का कथन किया, जिनशासन में हुए अनेक महर्षियों ने जिन प्रश्नों को अनेक प्रकार के विस्तार के साथ कहा है, जगत् के उपकारक जो प्रश्न दर्पण, अंगुष्ट, बाहु, खड्ग, मरकतादि मरिण, प्रतसी अथवा कपास से निर्मित वस्त्र, सूर्य, भित्ति, शंख घण्टा श्रादि से संम्बन्ध रखते हैं, उन सब प्रश्नों का, देवसहायप्राप्त महाप्रश्न विद्याओं तथा मनः प्रश्न विद्याओं का, लब्ध्यतिशय से सबको विस्मय में डाल देने वाले प्रश्नों का, अनन्त प्रतीत में हुए तीर्थंकरों की सत्ता को सिद्ध करने में समर्थ प्रश्नों का श्रीर प्रश्न- विद्याओं के अद्भुत गुणों का निरूपण प्रश्नव्याकरण में किया गया है । प्रश्नव्याकरण सूत्र में १ श्रुतस्कन्ध, ४५ उद्दे शनकाल, ४५ समुद्द शनकाल, संख्यातसहस्र पद, संख्यात प्रक्षर, परिमित वाचनाएं, संख्यात श्लोक, संख्यात निर्युक्तियां, संख्यात संग्रहणियां और संख्यात ही प्रतिपत्तियां हैं।" नंदीसूत्र में प्रश्नव्याकरण सूत्र का परिचय देते हुए बताया गया है :" दशवें अंग प्रश्नव्याकरण में १०८ प्रश्न १०८ अप्रश्न एवं १०८ प्रश्नाप्रश्न जैसे कि अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न, दर्पणप्रश्न आदि ( जिनमें मंत्र अथवा विद्यां के प्रभाव से अंगुष्ठ, भुजा एवं दर्पण प्रादि शुभाशुभ का कथन कर देते हैं) विचित्र प्रभावशाली विद्याओं का वर्णन तथा साधकों के साथ नाग कुमारों, सुपर्णकुमारों प्रादि भुवनपति देवों के संवादों का वर्णन है। इसमें १ श्रुतस्कन्ध, ४५ अध्ययन, " नंदी - मलय वृत्ति के अनुसार जिन मंत्रों-विद्यानों द्वारा अंगुष्ठ, बाहु आदि के प्रश्न के माध्यम से शुभाशुभ का कथन किया जाता है, उन्हें प्रश्न, और जिन विद्यानों अथवा मंत्रों के द्वारा बिना किसी प्रकार का प्रश्न किये ही शुभाशुभ का कथन किया जाता है उन्हें अप्रश्न धौर जिन मंत्रों अथवा विद्यानों द्वारा अंगुष्ठ प्रादि के प्रश्न तथा अप्रश्न दोनों से सम्बन्ध रखकर शुभाशुभ का कथन किया जाता है उन्हें प्रश्नाप्रश्न कहा गया है । [सम्पादक ] Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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