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________________ ५. विग्राह-पपत्ति ] केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा १३५. २३ वें शतक में ५ वर्ग और प्रत्येक वर्ग के दश दश उद्देशक के हिसाब से कुल ५० उद्देशक हैं । २४ वें शतक में २४ उद्देशक हैं । २५ वें शतक में १२ उद्देशक हैं। पहले में लेश्या और योग का, दूसरे में द्रव्य का, तीसरे में संस्थान, गरिपिटक, अल्पबहुत्व, चार में युग्म और पर्याय, अल्प बहुत्व आदि, पांचवें में कालपर्यव और दो प्रकार के निगोद, छठे में पांच प्रकार के निर्ग्रन्थ का ३६ द्वारों से वर्णन, सातवें में पांच प्रकार के संयम का ३६ द्वार से वर्णन करके दश प्रतिसेवना, दश आलोचना दोष, दश प्रालोचनायोग्य, दश समाचारी, दश प्रायश्चित्त, और तप के बारह भेदों का विस्तृत वर्णन है । प्राठव उद्देशक में समुच्चय नारक, नौवें में भव्य नारक, दशवें में प्रभव्य नारक, ग्यारहवें में समदृष्टि और बारहवें में मिथ्यादृष्टि नारक की उत्पत्ति मादि के सम्बन्ध में विचार किया गया है । २६ वें शतक में ११ उद्देशक हैं। पहले में जीव के पापबन्ध का विचार दूसरे में अनन्तरोपपन्न, तीसरे में परंपरोपपन्न, चौथे में अनन्तरावगाढ़, पांचवें उद्देशक में परम्परावगाढ़, छठे में अनन्तराहारक, सातवें में परम्पराहारक, पाठवें में प्रन्तर्पर्याप्त, नौवें में परम्परपर्याप्त, दशवें में चरम और ११ वें में प्रचरम चौवीस दण्डक के जीवों में बन्ध कहा गया है । २७ वें शतक में ११ उद्देशकों से पाप कर्म के बन्ध का विचार किया गया है । २८ वे शतक में ११ उद्देशक हैं। पहले उद्देशक में भूतकाल के बन्ध प्रादि का वर्णन किया गया है और शेष १० उद्देशक २६ वें शतक के उद्दे शकों के समान हैं । २९ वे शतक में ११ उद्दे शक हैं जिनमें से पहले अध्ययन में पाप कर्मों के वेदन का विवरण दिया गया है और शेष १० उद्देशक छब्बीसवें शतक के उद्देशकों के समान हैं । ३० वे शतक में ११ उद्देशक हैं। पहले उद्दे शक में चार समवसरण मौर जीव के सम्बन्ध का विवेचन किया गया है । शेष दश उद्देशक २६ वें शतक के उद्देशकों के समान हैं । ३१ वें शतक में २८ उद्देशक हैं जिनमें चार युग्म से नरक के उपपात का विवरण दिया गया है । ३२ वें शतक में २८ उद्दे शक हैं जिनमें नारक का उद्वर्तन ३१ वे शतक के समान बताया गया है । ३३ वें शतक में १२ अवान्तरशतक हैं जिन्हें १२ एकेन्द्रिय शतक के नाम से सम्बोधित किया गया । प्रथम ८ श्रवान्तरशतकों के ११-११ और अंतिम ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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