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________________ १२४ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [४. समवायांग सागरोपम होने का उल्लेख है। इसमें यह भी बताया गया है कि पक्ष्म, सुपक्ष्म, पक्षमावर्त प्रादि ३५ विमानों के देवों में से कतिपय देव ६ भवों में अजरामर मोक्षपद को प्राप्त कर लेंगे। .. यों तो इन समवायों में दी हई पूरी की पूरी सामग्री महत्वपूर्ण है किन्तु इनमें से प्रत्येक समवाय में अनेक ऐसे तथ्यों का प्रतिपादन किया गया है जो प्राध्यात्मिक, ऐतिहासिक, तात्विक और साहित्यिक सभी दृष्टियों से अत्यधिक महत्व रखते हैं। १० वीं समवाय में ज्ञानवृद्धि के मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वा प्राषाढ़ा, पूर्वा भाद्रपदा, मूळा, पाश्ळेषा, हस्त और चित्रा- इन १० नक्षत्रों का उल्लेख किया गया है। ११ वीं समवाय में ११ उपासक पडिमानों का उल्लेख है तथा लोकान्त से ज्योतिषचक्र का अन्तर ११११ योजन बताया गया है। - १२ वीं समवाय में १२ भिक्षु-प्रतिमाओं, श्रमणों के १२ प्रकार के व्यवहारसंभोग, एवं रामबळदेव की १२०० वर्ष की आयु प्रादि का उल्लेख है। १३ वें समवाय में दिलुप्त हुये प्रारणायुपूर्व की १३ वस्तु और १३ प्रकार के चिकित्सा स्थान आदि का निरूपण किया गया है। .. १४ वें समवाय में १४ प्रकार के भूतग्राम-जीवसमूह, अग्रायणी पूर्व की १४ वस्तुओं, भगवान् महावीर की १४,००० उत्कृष्ट श्रमरण संपदा, १४ जीव स्थानमिथ्यात्व प्रादि का उल्लेख है। १५ वें समवाय में राह द्वारा कृष्ण पक्ष में नित्य प्रति चन्द्र के १५ वें भाग का प्रावरण, अमावस्या को पूरे १५ ही भागों का प्रावरण और इसी क्रम से शुक्ल पक्ष में अनावरण करना बताया गया है। इसमें विलुप्त हुए विद्यानुप्रवादपूर्व की १५ वस्तुओं का भी उल्लेख है । ... १६ वें समवाय में प्रात्मप्रवाद पूर्व का १६ वस्तुओं का, १७ वें समवाय में १७ प्रकार के मरण का, १८ वें समवाय में अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की १८ वस्तुओं का, श्रमण निर्ग्रन्थों के १८ स्थानों प्रादि का और १६वें समवाय में शुक्र ग्रह का १६ नक्षत्रों के साथ भ्रमण करना और पश्चिम में प्रस्त होना तथा १६ तीथंकरों का गृहस्थवास में रहकर दीक्षित होना बताया गया है। २० वें समवाय में प्रत्याख्यान पूर्व की २० वस्तुओं तथा २१ वें समवाय में २१ प्रकार के दोषों का उल्लेख किया गया है। २२ वें समवाय में दृष्टिवाद के २२ सूत्र छिन्नछेद नय वाले २२ सूत्र माजीविक की अपेक्षा अछिन्नछेद नय सम्बन्धी, २२ सूत्र राशिक सूत्र की परिपाटी से पोर २२ सूत्र चतुर्नयिक स्वसमय सूत्र की दृष्टि वाले कहे गये हैं। २३ वें समवाय में भगवान् अजितनाथ आदि २३ तीर्थकर पूर्व भव में एकादशांगधर और मंडलिक राजा बताये गये हैं। २४ वें समवाय में ऋषभ आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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