SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . ४. समवायांग] केवलिकाल : प्रार्य सुधर्मा १२३ ___ सातवें समवाय में सात प्रकार के भयस्थान एवं सात ही प्रकार के समुद्घोत का उल्लेख करने के पश्चात् निम्नलिखित तथ्यों का उल्लेख है :-श्रमण भगवान् महावीर का शरीर सात रत्नि (मुंड हाथ) प्रमाण ऊंचा था। जम्बूद्वीप में सात वर्षधर और सात ही क्षेत्र हैं। बारहवें गुरणस्थानवर्ती वीतराग भगवान् मोहनीय कर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का अनुभव करते हैं। मघा नक्षत्र ७ तारों वाला है। कृत्तिका आदि सात नक्षत्र पूर्वद्वार वाले, मघा मादि सात नक्षत्र दक्षिण द्वार वाले, अनुराधा आदि सात नक्षत्र पश्चिम द्वार वाले और घनिष्ठा आदि ७ नक्षत्र उत्तर द्वार वाले बताये गए हैं । इस समवाय में नारकीयों असुरकुमारों और देवों में से कतिपय की आयु ७ पल्योपम और कतिपय की उत्कृष्ट प्रायु ७ सागरोपम की बताने के पश्चात् यह उल्लेख भी किया है कि सम, समप्रभ आदि पाठ विमानों के कतिपय देव सात भवों में सिद्ध होने वाले हैं । आठवें समवाय में ८ मदस्थान और आठ प्रवचनमाताओं के नामोल्लेख के पश्चात् बताया गया है कि व्यन्तरदेवों के चैत्यवृक्षों, जम्बूद्वीप की जगती, और देवकुरूक्षेत्र स्थित गरुड़ जातीय वेणुदेव के आवास की ऊंचाई आठ योजन है। इसमें आठ समय के केवलिसमुद्घात का विवरण देते हुये बताया गया है कि प्रथम समय में वे दण्ड, द्वितीय समय में कपाट, और तीसरे समय में मंथान करते हैं। चतुर्थ समय में वे मंथान के छिद्रों को पूरित, पांचवें समय में उन छिद्रों को संकुचित और छटे समय में मंथान को प्रतिसंहरित करते हैं । सातवें समय में कपाट को और पाठवें समय में दंड को संकोचते हैं और तदनन्तर वे पुनः स्वशरीरस्थ हो जाते हैं। इस समवाय में भगवान् पार्श्वनाथ के ८ गरण और ८ गणधरों के उल्लेख के पश्चात यह बताया गया है कि जब चन्द्रमा कृत्तिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा इन आठ नक्षत्रों के साथ रहता है तब प्रम नाम का योग होता है। इस समवाय में कुछ नारकीयों, असुरकुमारों और देवों की मध्यम स्थिति ८ पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति ८ सागरोपम की बताने के पश्चात यह उल्लेख किया गया है कि अचि, अचिमालि, वैरोचन आदि ११ विमानों के देवों में से कतिपय देव पाठ भवों में सिद्धि प्राप्त करने वाले हैं। __नौवें समवाय में ह ब्रह्मचर्यगुप्तियों, ६ अब्रह्मचर्यगुप्तियों, प्राचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के ६ अध्ययनों के नामोल्लेख के पश्चात् बताया गया है कि भगवान् पार्श्वनाथ के शरीर की ऊंचाई ६ रत्नि (मुण्ड हाथ) थी। इसमें तारामण्डल को रत्नप्रभा पृथिवी के सम भाग से ९०० योजन दूरी पर बताया गया है। इसमें जम्बूद्वीप की जगती में ह योजन के छेदों के उल्लेख के साथ यह भी बताया गया है कि ह योजन की लम्बाई-चौड़ाई के मच्छ लवरणसमुद्र में से जम्बूद्वीप में पहले भी आये हैं, पाते हैं और आते रहेंगे। इस समवाय में जम्बूद्वीप सम्बन्धी विजयद्वार के पार्श्व में नौ-नो भोमों, व्यन्तरों की सुधर्मसभा की ऊंचाई ६ योजन, दर्शनावरणीय कर्म की ६ उत्तरप्रकृतियों और कतिपय नारकीयों, असुरकुमारों, देवों की मध्यम स्थिति ६ पल्योपम और उत्कृष्ट स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy