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प्रभु ऋषभ का राज्याभिषेक] भगवान् ऋषभदेव कर नवीन राज्य-व्यवस्था स्थापित की। प्रभु के राज्यसिंहासन पर आसीन होने पर कर्मयुग का शुभारम्भ हुआ और इस भरतक्षेत्र में भोगभूमि के अवसान के साथ ही कर्मभूमि का प्रादुर्भाव हुआ।
राजसिंहासन पर आसीन होते ही महाराजाधिराज ऋषभदेव ने अपनी प्रजा का कर्मक्षेत्र में उतरने के लिए आह्वान किया। अपने हृदयसम्राट महाराजाधिराज ऋषभदेव के आह्वान पर सुनहरी अभिनव पाशानों से ओतप्रोत मानवसमाज कर्मक्षेत्र में उतरने के लिए कटिबद्ध हो गया । प्रभु ने उसी दिन कर्मभूमि के अभिनव निर्माण का महान कार्य अपने हाथ में लिया।
जिस समय भ० ऋषभदेव का राज्याभिषेक किया गया उस समय उनकी प्रायु २० लाख पूर्व की थी।
सशक्त राष्ट्र का निर्माण राज्याभिषेक के पश्चात् महाराजा ऋषभदेव ने राज्य की सुव्यवस्था के लिये सर्वप्रथम आरक्षक विभाग की स्थापना कर प्रारक्षक दल सुगठित किया। उसके अधिकारी 'उग्र' नाम से अभिहित किये गये । तदनन्तर उन्होंने राजकीय व्यवस्था के कार्य में परामर्श के लिए एक मन्त्रिमण्डल का निर्माण किया और उन मंत्रियों को पृथक-पृथक विभागों का उत्तरदायित्व सौंपा। उन विभागों के उच्चाधिकारी मन्त्रियों को 'भोग' नाम से सम्बोधित किया जाने लगा।
__ तत्पश्चात् महाराजा ऋषभदेव ने सम्पूर्ण राष्ट्र को पृथक्-पृथक् ५२ जनपदों में विभक्त कर उनका शासन चलाने के लिए महामाण्डलिक राजामों के रूप में सुयोग्य व्यक्तियों का राज्याभिषेक किया। महामाण्डलिक राजाओं के प्रधीन अनेक छोटे-छोटे राज्यों को गठित कर उनका सुचारु रूप से शासन चलाने के लिए राजामों को उन राज्यों के सिंहासन पर अधिष्ठित किया गया। उन बड़े पौर छोटे सभी शासकों को उनका उत्तरदायित्व समझाते हुए उन्होंने कहा- "जिस प्रकार सूर्य अपनी रश्मियों द्वारा जलाशयों, वनस्पतियों और धरातल से उन्हें बिना किसी प्रकार की प्रत्यक्ष बड़ी हानि पहुंचाये थोड़ा-थोड़ा जल वाष्प के रूप में खींचता है, उसी प्रकार राज्य के संचालन के लिये, राष्ट्र की शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रजा से थोड़ा-थोड़ा कर लिया जाय और जिस प्रकार सूर्य द्वारा वाष्प के रूप में ग्रहण किये हुए जल को वर्षा ऋतु में बादल समान रूप से सर्वत्र बरसा देते हैं, उसी प्रकार प्रजा से कर रूप में ग्रहण किये हुए उस धन को प्रजा के हित के कार्यों में खर्च किया जाय । प्रजा को बिना किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाये तुम्हें सूर्य की किरणों के समान प्रजा से कर के रूप में धन एकत्रित करना है और बादलों की तरह समष्टि के हित के लिये ही उस एकत्रित धन राशि का व्यय करना है।"
इस प्रकार राज्यों का गठन करने के पश्चात् महाराज ऋषभ ने उन राजामों के एक परामर्श मण्डल की स्थापना की जो महाराजाधिराज ऋषभदेव
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