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________________ ३ जैन धर्म का मौलिक इतिहास [प्रमु ऋषभ का राज्याभिषेक कण्ठस्वर में कहा-"महाराज नाभि ने प्रापको ही राजपद पर अभिषिक्त करने की प्राज्ञा प्रदान की है। हम लोग अभी जल लाकर आपका राज्याभिषेक करते हैं।" ___ यह कह कर योगलिक लोग हर्ष से उछलते हुए तत्काल त्वरित गति से पग्रसरोवर की ओर प्रस्थित हुए । उसी समय देवराज शक्र का सिंहासन चलायमान हुआ। अवधिज्ञान के उपयोग से प्रभू ऋषभदेव का महाराज्याभिषेक काल समीप जान कर वे अपने देव-देवी परिवार के साथ उत्कृष्ट देव-वैभानिक गति से प्रभू की सेवा में पहुंचे। प्रभु को वन्दन-नमन करने के पश्चात् देवराज ने उन्हें स्नान कराया। दिव्य वस्त्राभूषणों से प्रभु को अलंकृत कर इन्द्र ने उन्हें एक दिव्य राजसिंहासन पर प्रासीन किया और बड़े हर्षोल्लास से प्रभु का महाराज्याभिषेक किया। प्राकाश से देवों ने पुष्पवर्षा की । दिव्य वाद्य यन्त्रों की सुमधुर ध्वनियों से समस्त वातावरग मुखरित हो उठा। शक के पश्चात् महाराज नाभि ने भी अपने पुत्र का महाराज्याभिषेक किया। देवांगनाओं ने मंगल गीत गाये। उसी समय योगलिकों का विशाल समूह पद्मपत्रों में सरोवर का जल लेकर प्रभु के राज्याभिषेक के लिए वहां उपस्थित हुआ । प्रभु को राज्यसिंहासन पर आसीन देख, उन लोगों के हर्ष का पारावार नहीं रहा। वे लोग प्रभु के अभिषेक के लिये प्रभु के समीप आये किंतु दिव्य वस्त्राभरणों से अलंकृत अतीव कमनीय नयनाभिराम देष में सुसज्जित, ऋषभदेव को देख कर उनके मन में विचार आया - "इस प्रकार की सुन्दर वेषभूषा से विभूषित प्रभु के शरीर पर पानी कैसे डाला जाय?" एक क्षरण के इस विचार के अनन्तर दूसरे ही क्षण में उन्होंने ऋषभदेव के चरणों पर कमलपत्र के पुटकों से पानी डालकर प्रभू का राज्याभिषेक किया और "महाराजाधिराज ऋषभदेव की जय हो, विजय हो" आदि जयघोषों से वायुमण्डल को गुंजरित करते हुए प्रभु को अपना एकछत्र अधिपति महाराजाधिराज स्वीकार किया। ___ यौगलिकों के इस विनीत स्वभाव को देखकर देवेन्द्र शक ने इक्ष्वाकु भूमि के उस प्रदेश पर कुबेर को आज्ञा देकर एक विशाल नगरी का निर्माण करवाया और यह कहते हुए कि यहां के लोग बड़े ही विनीत हैं, उस नगरी का नाम विनीता रखा 1 उस नगरी के चारों ओर अति विशाल गहरी परिखा, दुर्भद्य प्राकार, गगनचुम्बी सुदृढ़ मुख्य नगरद्वार और द्वारों के वज्र कपाटों के निर्माण के कारण वह नगरी कालान्तर में युद्ध का प्रसंग उपस्थित होने पर भी अभेद्य, अजेय और अयोध्य थी, इस कारण विनीता नगरी अयोध्या के दूसरे नाम से भी लोक में विख्यात हुई। योगलिकों ने बड़े हर्षोल्लास के साथ भगवान् ऋषभदेव का अपने ढंग से राज्याभिषेक महोत्सव मनाया। इस प्रकार भगवान् ऋषभदेव इस प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम राजा घोषित हुए। उन्होंने पहले से चली आ रही कुलकर व्यवस्था को समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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