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________________ प्रभु ऋषभ का राज्याभिषेक] भगवान् ऋषभदेव ज्वाला को शान्त करने के लिये सब ओर कलह, लूट-खसोट, छीना-झपटी के रूप में अपराधी मनोवृत्ति फैल रही है। अपराधों को रोक कर हमारे जीवननिर्वाह की समुचित व्यवस्था के लिये मार्गदर्शन की कृपा कीजिये।" भोगयुग की सुखद कोड़ में पले यौगलिकों की दयनीय दशा पर प्रभु द्रवित हो उठे। उन्होंने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा - "देखो! अब इस भरतक्षेत्र में कर्मयुग ने पदार्पण किया है। नोगयुग यहां से प्रयाण कर चुका है । अब तुम्हें अपने जीवन-निर्वाह के लिये कठोर श्रम करना होगा।" यौगलिकों को अपने अन्धकारपूर्ण भविष्य में एक आशा की किरण दृष्टिगोचर हुई। उनकी निराशा दूर हुई और उन्होंने दृढ़ संकल्पसूचक स्वर में कहा- "प्रभो! हम आपके इंगित् मात्र पर कठोर से कठोर श्रम करने के लिये कटिबद्ध हैं।" प्रभु ने कहा.. "मुझे विश्वास है, तुम कर्मक्षेत्र में कटिबद्ध हो कर उतरोगे तो अपना ऐहिक जीव । सुख-समृद्धिपूर्ण बनाने में सफल होवोगे।" "अब रहा प्रश्न अपराध-निरोध का, तो अपराध-निरोध के लिये लोगों में अपराधी मनोवृत्ति नहीं पनपे और सभी लोगों द्वारा मर्यादा का पूर्णरूपेण पालन हो, इसके लिये दण्डनीति की, दण्ड-व्यवस्था की आवश्यकता रहती है । दण्ड-नीति का संचालन राजा द्वारा किया जाता है । राजा ही उस दण्डनीति में परिस्थितियों के अनुरूप संशोधन, संवर्द्धन आदि किया करता है। राजा का राज्य-पद पर वृद्धजनों, प्रजाजनों आदि द्वारा अभिषेक किया जाता है।" यह सुनते ही यौगलिकों ने हर्षविभोर हो हाथ जोड़ कर ऋषभकुमार से निवेदन किया- "आप ही हमारे राजा हों। हम अभी आपका राज्याभिषेक करते हैं।" इस पर कुमार ऋषभ ने कहा- “महाराज नाभि हम सब के लिये पूज्य हैं। तुम सब लोग महाराज नाभि की सेवा में उपस्थित होकर उनसे निवेदन करो।" यौगलिकों ने नाभि कुलकर की सेवा में उपस्थित हो, उनके समक्ष सम्पूर्ण स्थिति रखी । उन यौगलिकों की विनम्र प्रार्थना सुन कर नाभि कुलकर ने कहा"मैं तो अब वृद्ध हो चुका है, अतः तुम ऋषभदेव को राज्यपद पर अभिषिक्त कर उन्हें अपना राजा बना लो। वस्तुतः वे ही इस संकटपूर्ण स्थिति से तुम्हारा उद्धार करने में सर्वथा सक्षम और सभी दृष्टियों से राज्यपद के लिये सुयोग्य हैं।" नाभि कुलकर की आज्ञा प्राप्त होते ही यौगलिक लोग बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने हाथ जोड़ कर नाभिराज से कहा- “महाराज ! हम लोग अभी कुमार ऋषभदेव को राजपद पर बैठा कर उनका राज्याभिषेक करते हैं।" नाभि कलकर से इस प्रकार का निवेदन कर वे लोग तत्काल ऋषभदेव के पास पाये । हर्षातिरेक से उनके नयन विस्फारित हो गये थे । अपने मनचिंतित मनोरथ की सिद्धि के कारण वे पुलकित हो उठे। ऋषभदेव से उन्होंने हर्षावरुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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