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भ० ऋषभदेव की सन्तति] भगवान् ऋषभदेव
स्वप्नफल सुन कर देवी सुमंगला परम प्रमुदित हुई और प्रभु को प्रणाम कर अपने शयनकक्ष में लौट गई। उसने शेष रात्रि धर्मजागरणा करते हुए व्यतीत की। जैसा कि ऊपर बताया गया है, गर्भकाल पूर्ण होने पर देवी सुमंगला ने भरत और ब्राह्मी को जन्म दिया। भरत के चरणों में चौदह रत्नों के चिह्न थे। पितामह नाभिराज और मातामही मरुदेवी ने दो पौत्रों और दो पौत्रियों के जन्म के उपलक्ष में हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया।
कालान्तर में देवी सुमंगला ने अनुक्रमशः ४६ बार में युगल रूप से जिन १८ पुत्रों को जन्म दिया, उन सहित प्रभू ऋषभदेव के सब मिला कर १०० पुत्र और दो पुत्रियां हुई । उनके नाम इस प्रकार हैं :१. भरत २८. मागध
५५. सुसुमार २. बाहुबली २६. विदेह
५६. दुर्जय ३. शङ्क ३०. संगम
५७. अजयमान ४. विश्वकर्मा ३१. दशार्ण
५८. सुधर्मा ५. विमल ३२. गम्भीर
५६. धर्मसेन ६. सुलक्षण ३३. वसुवर्मा
६०. प्रानन्दन ७. अमल ३४. सुवर्मा
६१. आनन्द ८. चित्राङ्ग ३५. राष्ट्र
६२. नन्द ६. ख्यातकीति ३६. सुराष्ट्र
६३. अपराजित १०. वरदत्त ३७. बुद्धिकर
६४. विश्वसेन ११. दत्त
३८. विविधकर ६५. हरिषेण १२. सागर ३६. सुयश
६६. जय १३. यशोधर
४०. यशःकीर्ति ६७. विजय १४. प्रवर ४१. यशस्कर
६८. विजयन्त १५. थवर
४२. कीर्तिकर ६६. प्रभाकर १६. कामदेव ४३. सुषेण
७०. अरिदमन १७. ध्रुव ४४. ब्रह्मसेरण
७१. मान १८. वत्स ४५. विक्रान्त
७२. महाबाहु १६. नन्द ४६. नरोतम
७३. दीर्घवाह २०. सूर ४७. चन्द्रसेन
७४. मेघ २१. सुनन्द ४८. महसेन
७५. सुघोष २२. करु ४६. सुसेरण
७६. विश्व २३. अंग ५०. भानु
७७. वराह २४. बंग ५१. कान्त
७८. वस् २५. कौशल ५२. पुष्पयुत्
७९. मेन २६. वीर ५३. श्रीधर
८०. कपिल २७. कलिंग ५४. दुर्दष
८१. शैल विचारी
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