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जैन धर्म का मौलिक इतिहास
[भ० ऋषभदेव की सन्तति
है । तब भगवान् ने मिट्टी गीली कर हाथी के कुम्भस्थल पर उसे जमा कर पात्र बनाया और बोले कि ऐसे पात्र वना कर धान्य को उन पात्रों में रख कर आग पर पकाने से वह नहीं जलेगा । इस प्रकार वे लोग आग में पका कर खाद्यान्न खाने लगे । मिट्टी के बर्तन और भोजन पकाने की कला सिखा कर ऋषभदेव ने उन लोगों की समस्या हल की, इसलिये लोग उन्हें धाता, विधाता एवं प्रजापति कहने लगे । इस प्रकार समय-समय पर ऋषभदेव से मार्गदर्शन प्राप्त कर प्रभु की शीतल छत्रछाया में सब लोग शान्ति से अपना जीवन बिताने लगे ।
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इस प्रकार लगभग १४ लाख पूर्व तक भगवान् ऋषभदेव ने भोगभूमि और कर्मभूमि के संक्रान्तिकाल में उस समय के भोले यौगलिक लोगों को 'कुलकर के रूप में समय-समय पर जीवनयापन का मार्ग दिखा कर एवं उनकी पीड़ानों, कष्टों और समस्यानों का समुचित रूप से समाधान कर मानवता पर महान् उपकार किया । प्रभु ऋषभदेव द्वारा मानवता पर अपने कुलकरकाल में किये गये महान् उपकारों की अमर स्मृति के रूप में ही आगमीय व्याख्या ग्रन्थों की रचना करने वाले आचार्यों ने "जइया किर कुलगरो उसभो” इन गाथापदों के रूप में प्रभु की यशोगाथाओं का गान किया है ।
भ० ऋषभदेव की सन्तति
चौदहवें कुलकर अपने पिता नाभि के सहयोगी कुलकर के रूप में लगभग चौदह लाख पूर्व के अपने उक्त कुलकर काल के प्रारम्भ मे जब भ० ऋषभदेव की वय ६ लाख पूर्व की हुई, उस समय देवी सुमंगला ने पुत्र और पुत्री के एक मिथुन के रूप में भरत और ब्राह्मी को जन्म दिया। भरत और ब्राह्मी के जन्म के थोड़ी ही देर पश्चात् देवी सुनन्दा ने भी पुत्र-पुत्री के एक मिथुन के रूप में बाहुबली और सुन्दरी को जन्म दिया। देवी सुमंगला ने कालान्तर में पुनः अनुक्रमशः उनपचास बार गर्भ धारण कर, ४६ पुत्र युगलों को जन्म दिया । [ इस प्रकार देवी सुमंगला ६६ पुत्रों और एक पुत्री की तथा देवी सुनन्दा एक पुत्र एवं एक पुत्री की माता बनी ।
देवी सुमंगला ने प्रथम गर्भधारण-काल में तीर्थंकरों की माताओं के समान ही १४ महास्वप्नों को देखा । सुखपूर्वक सोयी हुई देवी सुमंगला ने रात्रि के पश्चिम प्रहर में अर्द्ध-जागृतावस्था में वे चौदह महास्वप्न देखे | स्वप्नों को देखते ही देवी सुमंगला जागृत हुई और उसी समय वे प्रभु ऋषभ के शयन कक्ष में गईं । पति द्वारा प्रदर्शित आसन पर बैठ कर देवी सुमंगला ने उन्हें अपने चौदह स्वप्न सुना कर स्वप्नों के फल की जिज्ञासा की । तीन ज्ञान के धनी ऋषभदेव ने देवी सुमंगला द्वारा देखे गये स्वप्नों का फल सुनाते हुए कहा "देवी ! इन स्वप्नों पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि तुम एक ऐसे महान् पुण्यशाली चरम शरीरी पुत्ररत्न को जन्म दोगी जो आगे चल कर सम्पूर्ण भरत क्षेत्र का षट्खण्डाधिपति चक्रवर्ती सम्राट् होगा ।"
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