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जैन धर्म का मौलिक इतिहास [निर्वाण का ऐतिहासिक विश्लेषण
प्रमारणों के समन्वय से यह सिद्ध होता है कि जिस दिन भगवान महावीर ने ७२ वर्ष की प्राय पूर्ण कर निर्वाण प्राप्त किया उस दिन प्रद्योत का ५८ वर्ष की उम्र में देहावसान हुअा और उस दिन बुद्ध ५८ वर्ष के हो चुके थे । बुद्ध की पूरी आयु ८० वर्ष मानी गई है। इससे बुद्ध का जन्मकाल भगवान् महावीर के जन्म से १४ वर्ष पश्चात्, बुद्ध का दीक्षाकाल महावीर को केवलज्ञान की प्राप्ति के आसपास, बोधिप्राप्ति भगवान महावीर की केवली-चर्या के आठवें वर्ष में और बुद्ध का निर्वाणकाल भगवान् महावीर के निर्वाण से २२ वर्ष पश्चात् का सिद्ध होता है।
चण्डप्रद्योत भगवान् महावीर से उम्र में छोटे थे इस तथ्य की पुष्टि श्री मज्जिनदासगरिण महत्तर रचित आवश्यक चूर्णी से भी होती है। रिणकार ने लिखा है कि जिम समय भगवान् २८ वर्ष के हुए उस समय उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। तदनन्तर महावीर ने अपने अपरिग्रह के अनुसार प्रव्रजित होने की इच्छा व्यक्त की, पर नन्दीवर्द्धन आदि के अनुरोध पर संयम के साथ विरक्त की तरह दो वर्ष गृहवास में रहने के पश्चात् प्रव्रज्या ग्रहण करना स्वीकार किया। महावीर द्वारा इस प्रकार की स्वीकृति के पश्चात् श्रेणिक और प्रद्योत प्रादि कुमार वहाँ से विदा हो अपने-अपने नगर की ओर लौट गये । इस सम्बन्ध में चूर्णिकार के मूल शब्द इस प्रकार हैं :
....... ताहे सेणियपज्जोयादयो कुमारा पडिगता, ण एस चविकत्ति ।"
चूर्णिकार के इस वाक्य पर वायुपुराण और महावीर-निर्वाणकाल के संदर्भ में विचार करने से ज्ञात होता है कि प्रद्योत की आयु महाराज सिद्धार्थ मोर त्रिशला देवी के स्वर्ग गमन के समय १४ वर्ष की थी। तदनुसार ५२७ ई० पूर्व भगवान् महावीर का प्रामाणिक निर्वाणकाल मानने पर महावीर का जन्म ई० पूर्व ५६६ में और बुद्ध का जन्म ई० पूर्व ५८५ होना सिद्ध होता है ।
इन सब,तथ्यों को एक दूसरे के साथ जोड़ कर विचार करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि भगवान् महावीर का निर्वाण ई० पूर्व ५२७ में हुआ और बद्ध का निर्वाण भगवान महावीर के निर्वाण से २२ वर्ष पश्चात् अर्थात् ई० पूर्व ५०५ में हुआ।
अशोक के शिलालेखों में अंकित २५६ के अंक जो विद्वानों द्वारा बद्ध निर्वाण वर्ष के सूचक माने जाते हैं, उनसे भी यही प्रमाणित होता है कि बुद्ध का निर्वाण ईस्वी पूर्व ५०५ में हुआ। इस सम्बन्ध में संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है :--
अशोक द्वारा लिखवाये गये लघु शिलालेख जो कि रूपनाथ, सहसराम और वैराट से मिले हैं, उनमें शिलालेखों के खुदवाने के काल तिथि के स्थान पर केवल २५६ का अंक खुदा हुआ है। इसके सम्बन्ध में अनेक विद्वानों का अभिमत १ जनार्दन भट्ट, प्रशोक के धर्मलेख ।
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