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________________ निर्वाण का ऐतिहासिक विश्लेषण] भगवान् माहवीर ७८१ इस जटिल समस्या को सुलझाने में सहायक होने वाले वायुपुराण के वे श्लोक इस प्रकार हैं : वृहद्रथेष्वतीतेषु वीतहोत्रेषु वतिषु १६८।। मुनिकः स्वामिनं हत्वा, पुत्रं समभिषेक्ष्यति । मिषतां क्षत्रियाणां हि प्रद्योतो मुनिको बलात् ।।१६६।। स वै प्रणतसामन्तो, भबिष्ये नयजितः । अयोविंशत्समा राजा भविता स नरोत्तम ।।१७०।। अर्थात् वार्हद्रथों (जरासंध के वंशजों) का राज्य समाप्त हो जाने पर वीतहोत्रों के शासनकाल में मुनिक सब क्षत्रियों के देखते-देखते अपने स्वामी की हत्या कर अपने पुत्र को अवन्ती के राज्यसिहासन पर बैठायेगा । हे राजन् ! वह प्रद्योत सामन्तों को अपने वश में कर तेईस वर्ष तक न्याय-विहीन ढंग से राज्य करेगा। अन्तिम श्लोक में जो यह उल्लेख है कि प्रद्योत २३ वर्ष तक राज्य करेगा, यह तथ्य वस्तुत: बुद्ध के साथ भगवान महावीर के जन्म, दीक्षा, कैवल्य अथवा वोधि, निर्वाण तथा पूर्ण प्राय आदि कालमान को निर्णायक एवं प्रामाणिक रूप से निश्चित करने वाला तथ्य है। तिब्बती बौद्ध परम्परा की यह मान्यता है कि जिस दिन बद्ध का जन्म हा उसी दिन चण्डप्रद्योत का भी जन्म हुया और जिस दिन चण्ड प्रद्योत का अवन्ती के गजसिंहासन पर अभिषेक हुआ उसी दिन बल को बोधिलाभ हा। बद्ध की पूर्ण प्राय ८० वर्ष थी, उन्होंने २८ वर्ष की उम्र में गहत्याग किया और ३५ वर्ष की आय में उन्हें बोधि-प्राप्ति हुई-इन ऐतिहासिक तथ्यों को सभी इतिहासकार एकमत से स्वीकार करते हैं । जिस दिने बद्ध को बोधिलाभ हा उस दिन बुद्ध ३५ वर्ष के थे, इस सर्वसम्मत अभिमत के अनुसार बुद्ध और प्रद्योत के समवयस्क होने के कारण यह स्वतः प्रमाणित है कि प्रद्योत ३५ वर्ष की प्राय में अवन्ती का राजा वना । वायपुराण के इस उल्लेख से कि प्रद्योत ने २३ वर्ष तक राज्य किया, यह स्पष्ट है कि प्रद्योत ५८ वर्ष की आयु तक शासनारूढ़ रहा। उसके पश्चात् प्रद्योत का पुत्र पालक अवन्ती का राजा बना। जैन परम्परा के सभी प्रामाणिक प्राचीन ग्रन्थों में यह उल्लेख है कि भगवान महावीर का जिस दिन निर्वाण हा उसी दिन प्रद्योत के पुत्र पालक का उसके पिता की मृत्यु के पश्चात् अवन्ती में राज्याभिषेक हुआ। इस प्रकार सनातन, जैन और बौद्ध इन तीनों मान्यताओं द्वारा परिपुष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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