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________________ निर्वाण का ऐतिहासिक विश्लेषण] भगवान् महावीर ७७६ वस्तुतः उपर्युक्त श्लोक में महाभारतकार ने बुद्ध के प्रसंग में उस समय के प्रतापी राजा 'अंजन' के नाम का उल्लेख किया है। बौद्ध, जैन, सनातन और भारत की उस समय की अन्य सभी धर्मपरम्पराओं के साहित्यों में बद्ध सम्बन्धी विवरणों में बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन लिखा गया है, अतः श्रीमद्भागवत के उपरिलिखित श्लोक के आधार पर. बुद्ध को अंजन का पुत्र मानना तो श्रीमद्भागवतकार की मूल भावना के साथ अन्याय करना होगा, क्योंकि वास्तव में भागवतकार ने बुद्ध को राजा अंजन की सुता प्रांजनी का पुत्र बताया है। ऐसी स्थिति में उपर्युक्त पाठ में अनुस्वार के लोप और 'इ' की मात्रा के विपर्यय वाले पाठ को शुद्ध कर "बद्धो नाम्नांऽऽजनिसुतः" के रूप में पढ़ा जाय तो वह शुद्ध और युक्तिसंगत होगा। किसी लिपिकार द्वारा प्रमादवश अथवा वास्तविक तथ्य के ज्ञान के अभाव में अशुद्ध रूप से लिपिबद्ध किये गये उपयंकित प्रशुद्ध पाठों को शुद्ध कर देने पर एक नितान्त नया ऐतिहासिक तथ्य संसार के समक्ष प्रकट होगा कि महात्मा बुद्ध महाराज अंजन के दौहित्र थे। अंजन-सूता के सुत बुद्ध का श्रीमद्भागवतकार ने अंजनिसुत के रूप में जो परिचय दिया है वह व्याकरण के अनुसार भी बिलकुल ठीक है। जिस प्रकार रामायणकार ने जनक की पुत्री जानकी, मैथिल की पुत्री मैथिली के रूप में सीता का परिचय दिया है ठीक उसी प्रकार श्रीमद्भागवतकार ने भी अंजन की पुत्री का प्रांजनी के रूप में उल्लेख किया है। __ यह सब केवल कल्पना की उड़ान नहीं है अपितु बर्मी बौद्ध परम्परा इस तथ्य का पूर्ण समर्थन करती है। बर्मी वौद्ध परम्परा के अनुसार बुद्ध के नाना (मातामह) महाराज मंजन शाक्य क्षत्रिय थे। उनका राज्य देवदह प्रदेश में था। महाराजा अंजन ने अपने नाम पर ई० सन् पूर्व ६४८ में १७ फरवरी को आदित्यवार के दिन ईत्जाना संवत् चलाया ।' बर्मी भाषा में 'ईजाना' शब्द का प्रर्थ है अंजन । बर्मी बौद्ध परम्परा में बुद्ध के जन्म, गृहत्याग, बोधि-प्राप्ति और निर्वाण का तिथिक्रम ईजाना संवत् की कालगणना में इस प्रकार दिया है : १. बुद्ध का जन्म ईजाना संवत् के ६८वें वर्ष की बैशाखी पूर्णिमा को शुक्रवार के दिन विशाखा नक्षत्र के साथ चन्द्रमा के योग के समय में हुमा। २. बुद्ध ने दीक्षा ईत्याना' संवत् ६६ की आषाढ़ी पूर्णिमा, सोमवार के दिन चन्द्रमा का उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के साथ योग होने के समय में ली। Prabuddha Karnataka, a Kappada Quarterly published by the Mysore University. Vol. XXVII (1945-46) No.1 PP. 92-93. The Date of Nirvana of Lord Mahavira in Mahavira Commemoration Volume, PP. 93-94. २ Ibid Vol. 11 PP.71-72. 3 Life of Gautama, by Bigandet Vol. 1 PP. 62-63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002071
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1999
Total Pages954
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, Tirthankar, N000, & N999
File Size16 MB
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