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निर्वाणकाल]
भगवान् महावीर
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प्राचार्य यति वृषभ ने उपर्युक्त गाथा से पूर्व की गाथा संख्या १४६६, १४६७ और १४६८ में वीर निर्वारण के पश्चात क्रमशः ४६१ वर्ष, ६७८५ वर्ष तथा ५ मास मौर १४७६३ वर्ष व्यतीत होने पर भी शक राजा के उत्पन्न होने का उल्लेख किया है। अनेक विद्वान् यति वृषभ द्वारा उल्लिखित मतवैभिन्य को देखकर असमंजस में पड़ जाते हैं, पर वास्तव में विचार में पड़ने जैसी कोई बात नहीं है। ४६१ में जिस शक राजा के होने का उल्लेख है वह वीर निर्वाण सं० ४६५ में हो चुका है जैसा कि इसी पुस्तक के १० ४६८ पर उल्लेख है। इससे पाये की २ गाथाएं किन्हीं भावी शक राजामों का संकेत करती हैं, जो क्रमश: वीर निर्वाण संवत् ६७८५ और १४७६३ में होने वाले हैं ।
उपरिलिखित सब प्रमाणों से यह पूर्णतः सिद्ध होता है कि भगवान् महावीर का निर्वाण शक संवत्सर के प्रारम्भ से ६०५ वर्ष और ५ मास पर्व हुआ। इसमें शंका के लिये कोई अवकाश ही नहीं रहता, क्योंकि भगवान् महावीर के निर्वाणकाल से प्रारम्भ होकर सभी प्राचीन जैन आचार्यों की कालगणना शक संवत्सर से आकर मिल जाती है। वीरनिर्वाण-कालगणना और शक संवत् का शक संवत् के प्रारंभ काल से ही प्रगाढ़ संबन्ध रहा है और इन दोनों काल-गणनामों का आज तक वही सुनिश्चित अन्तर चला पा रहा है ।
इन सब पुष्ट प्रमाणों के आधार पर वीरनिर्वाण-काल ई० पूर्व ५२७ ही असंदिग्ध एवं सुनिश्चित रूप से प्रमाणित होता है । वीर-निर्वाण संवत् की यही मान्यता इतिहाससिद्ध और सर्वमान्य है।
भगवान् महावीर और बुद्ध के निर्वाण का ऐतिहासिक विश्लेषण
भगवान् महावीर और बुद्ध समसामयिक थे, अतः इनके निर्वाणकाल का निर्णय करते समय प्रायः सभी विद्वानों ने दोनों महापुरुषों के निर्वाणकाल को एक दूसरे का निर्वाणकाल निश्चित करने में सहायक मान कर साथ-साथ चर्चा की है। इस प्रकार के प्रयास के कारण यह समस्या सुलझाने के स्थान पर और अधिक जटिल बनी है।
वास्तविक स्थिति यह है कि भगवान् महावीर का निर्वाणकाल जितना सुनिश्चित, प्रामाणिक और असंदिग्ध है उतना ही बुद्ध का निर्वाणकाल प्राज तक भी अनिश्चित, अप्रामाणिक एवं संदिग्ध बना हुआ है । बुद्ध के निर्वाणकाल के संबन्ध में इतिहास के प्रसिद्ध इतिहासवेत्तानों की आज भिन्न-भिन्न बीस प्रकार की मान्यताएं ऐतिहासिक जगत् में प्रचलित हैं। भारत के लब्धप्रतिष्ठ इतिहासज्ञ रायबहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द अोझा ने अपनी पुस्तक 'भारतोय प्राचीन लिपिमाला' में 'बुद्ध निर्वाण संवत्' की चर्चा करते हुए लिखा है :
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