________________
७७४
जैन धर्म का मालिक इतिहास
[निर्वाणकाल
निर्वाण के २१५ वर्ष पश्चात माना है। वह राज्यारोहण प्रवन्ती का माना गया है । यह ऐतिहासिक तथ्य है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने पाटलीपुत्र राज्यारोहण के दस वर्ष पश्चात् अपना राज्य स्थापित किया था।'
इस प्रकार जैन काल मणना और सामान्य ऐतिहासिक धारणा से महावीर निर्वाण का समय ई० पू० ३१२+२१५= ५२७ होता है।
ऐसे अनेक इतिहास के विशेषज्ञों ने भी महावीर-निर्वाण का असंदिग्ध समय ई० पू० ५२७ माना है। महामहोपाध्याय रायबहादुर गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा (श्री जैन सत्य-प्रकाश, वर्ष २, अंक ४,५ प० २१७-८१ व "भारतीय प्राचीन लिपिमाला', पृ० १६३), पं० बलदेव उपाध्याय (धर्म और दर्शन, प० ८६), डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल (तीर्थकर भगवान् महावीर, भाग २, भमिका प०१६), डॉ० हीरालाल जैन (तत्त्व समुच्चय, पृ०६), महामहोपाध्याय पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ (भारत का प्राचीन राजवंश खण्ड २, पृ० ४३६) आदि विद्वान् उपर्युक्त निर्वाणकाल के निर्णय से सहमत प्रतीत होते हैं।
इन सबके अतिरिक्त ई० पू० ५२७ में भगवान् महावीर के निर्वाण को असंदिग्ध रूप से प्रमाणित करने वाला सबसे प्रबल और सर्वमान्य प्रमाण यह है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर सभी प्राचीन प्राचार्यों ने एकमत से महावीर निर्वाण के ६०५ वर्ष और ५ मास पश्चात् शक संवत् के प्रारम्भ होने का उल्लेख किया है। यथा :
छहिं वासारणसएहिं, पंचहि वासेहिं पंच मासेहिं । मम निव्वाणगयस्सउ उपज्जिसइ सगो राया ।।
[महावीर चरियं, (प्राचार्य नेमिचन्द्र) रचनाकाल वि० स० ११४१] पण छस्सयवस्सं पणमासजुदं । गमिय वीरनिव्वुइयो सगरायो ।। ८४८
[त्रिलोकसार, (नेमिचन्द्र) रचनाकाल ११वीं शताब्दी] रिणवाणे वीरजिणे छन्वाससदेसु पंचवरिसेसु । पणमासेसु गदेसु संजादो सगणियो अहवा ।।
तिलोय पण्मात्ती, भा० १, महाधिकार ४, गा० १४६६]
.
(क) The date 313 B.C. for Chandragupta accession, if it is based on correct
tradition, may refer to his acquisition of Avanti jo Malva, as the cbropological Datum is found in verse where the Maurya King finds mention in the list of succession of Palak, a king of Avanti. [H.C. Ray Chaudhary-Politi
cal History of Ancient India, P. 295.) (ख) The Jain date 313 B.C.if based on correct tradition may refer to acquisition of Avanti, (Malva).
(An Advanced History of India, P. 99)
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org